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________________ २४०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ . [क० २२, ३-९,२३,-" एम ताएँ तेव-णियम-सणाहों लोएँ अणायर किउ मुणि-णाहहाँ ॥३ सो वि करेवि अवग्गहु थक्कउ “जा ण फिट्ट संवाउ गुरुक्कउ ॥ ४ ता णिवित्ति महु सयलाहारहों" जाणवि णिच्छउ हय-संसारहों ॥५ सासण-देवयाएँ अत्थक्कएँ मुहु सूणाविउ गरुआसङ्कएँ ॥६ ताएँ वि एउ वुत्तु "अहों लोयों णिय-मणु मा सन्देहहों, ढोयहाँ ॥ ७ जं मइँ कहिउ सव्वु तं अलियां अजुनि पार असेसु वि फलियउ" ॥८ ॥धत्ता ॥ . . जं भाइ-जुअलुतं णिन्दियउ . पुव-भवन्तरें खल-मइएँ। "संवाउ एत्थ उवद्ध जणहों मझें तें जाणइऍ' ॥९ [२३] पंडिभणइ विहीसणु विमल-मइ कहि वालि-भवन्तर परम-जई' ॥१ तो कहइ भडारउ गहिर-गिरु 'विन्दारण्ण-स्थलें विउले चिरु ॥२ हीणङ्गु भमन्तु वि एक मउ सो रिसि-सज्झाउ सुणेवि मउ ॥३ पुणु जाउ कणय -धण-कण-पउरें अइरावऍ खेत्ते दित्ति-णयरें ॥४ " सावयहाँ विहिय - णामों सु-भुंउ सिवमइहें गन्भे महदत्तुं सुउ ॥५ तहिँ पालेंवि पश्चाणुव्व तिण्णि गुणव्यय (चउ) सिक्खावयइँ॥६ जिणवर - पुज्जउ ण्हवणउ करेंवि बहु - काले सण्णासैंण मरेंवि ॥ ७ ईसाण- सग्गें वर-देवु हुउ विहिँ रयणायरेहिँ गएहिँ चुउ ॥ ८ इह पुव्व-विदेहब्भन्तरऍ विजयावइ -पुरे णियडन्तरएँ ॥९ ॥ णामेण मत्तकोइलविउलु वर-गामु रहङ्गि व धण-बहुलु ॥ १० ॥ घत्ता ॥ तहिँ कन्तसोउ वर-राणउ रयणावइ पिय हंस- गइ । तहुँ वीहि मि सुप्पहु णामण गन्दणु जाउ (2) विमल-मइ ॥ ११ 1 Ps °व. 2 Ps लोइयवायरु. 3 4 लोइ°. PS °च्छि'. 4 Ps °देवाइय. 5. गउ'. 6 P अलि उं. 7 P°3. 23. 1 PS परि०. 2 PS A 'रु. 3 Ps omit, A विउ. 4 P s °णामयहो. 5s T. 6PS त. [२२] १ (v. 1.) लोकापवाद. २ स मुनिः. ३ अपवादः. ४ शीघेण. ५ मिथ्यादोषोद्भावनम्. [२३] १ मृगः. २ मृतः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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