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________________ क० २०, ९-११, २१, १-८, २२, १-२] उत्तरकण्डं-चउरासीमो संधि [२३९ चिर वेयर्वइ णेह - सम्वन्धे हिय दसकन्धरेण कामन्धे ९ जं मुणि पुव्व-जम्में णिन्दन्ती तं" इह दुहइँ महन्तइँ पत्ती ॥ १० ॥त्ता ॥ सिरिभूइ.काले सुअ-कारणे जं हउ सम्भु-णरेसरण। । तें लङ्केसरु चिरु हिंसणु विणिवाइउ लच्छीहरण' ॥ ११ --[२१] गुरु-वयणेहिँ तेहिँ गजोल्लिउ. पुणु वि विहीसणु एम पवोल्लिउ ॥ १ 'कहें के कम्में जणण विणीयहें' सइहें वि लञ्छणु लाइउ सीयहें' ॥ २ तं णिसुणेवि वयणु मुणि-पुङ्गमु अक्खइ णाण-महाणइ-सङ्गम् ॥३ 'मुणि सुअरिसणु आसि विहरन्तउ मण्डलि-णामु गामु संपत्तउ ॥४ . थिउ णन्दणवणे णिरु जिम्मल-मणु तं वन्देप्पिणु गउ सयलु वि जणु ॥५ मुणिवरो वि लहु-वहिणिऍ संवणऍ सइ महसइऍ समउ सुअरिसणऍ॥६ किं पि चवन्तु णिऍवि वेअवइएँ कहिउ असेसहँ लोयहँ कुमइऍ ॥७ ॥ घत्ता ॥ किं चोजु एउजं 'णाऍहिँ दूसिजइ घरु 'हरिहिँ वणु।। राउल-णिहाउ दुग्धरिणिहिँ पिसुण-सहासें साहु-जणु ॥८ [२२] "तुम्हहिँ भणहु चारु धम्मद्धउ णिजिय-पञ्चेन्दिय-मयरद्धउ ॥ १ म. पुणु ऍहु सयमेव परिक्खिउ सहुँ महिलऍ एअन्ते परिट्ठिउ" ॥२ हुय सुय जणयहो बहुगुणवंतहो सीया नाम विदेहाकंतहो ॥ रोमएवपिययम सीलंकिय सइ इंदहो विणयविहूसिय ॥ जेत्थु काले सो सुरु विवुहालउ वेयवई चरु चइवि विसालउ ॥ तेस्थु काले कुंडलमंडियपहु मरिवि सरिवि जिणवरपयपयतुहु ॥ विपिण वि जुयपय गभि णिसण्णा देवि विदेहहिं कंचणवण्णा ॥ भाइभइणिजुवलउ संजायउ गं तियसहो सुरमिहुणु समायउ ॥ भामंडलु सिरिसीयाणामउं गुणरयणायरु वंच्छियकामउं ॥ वेयवई ( इहि) णेहहो संबंधे हिय दसकंधरेण कामंधे ॥ जं जिंदिय मुणि आसि महंता तं इह णाणाविह दुह पत्ता ॥ 12 वेयरई. 18 Aणेइ. 14 A °म्मि. 15 ते. 21. 1 8 A हो. 2 P °हिं, S A °हि. 3 A चाउलणिहउ, 22.1 P SA°इ. . [२] अर्जिकायाः. २ सुदर्शन(? ना) नाम्ना. ३ स्त्रीभिः (?). ४ मर्कटैः. ५ राजगृहसदृशम्, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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