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क.१३,१-११७११
उत्तरकण्डं-चउरासीमो संधि [२३५
[१३] वहु-काले सल्लेहणे मरेवि • ईसाण-सग्गे सुर जाय वे वि ॥ १ रयणायराइँ तहिँ दुइ गमेवि पंउमप्पहु सुरवरु पुणु चवेवि ॥ २ हुउ अवरविदेहें जयइरि-सिहर सु-मणोहरें चन्दावत्त-णयरें ॥ ३ णन्दीसरपहु-कणयप्पहाहँ.. सुउ णयणाणन्दणु णामु ताहँ ॥४ तहिँ रज्जु अमर-लीलऍ करेवि तव-चरणु चरेप्पिणु पुणु मरेवि ॥५ माहिन्द-सग्गें गिव्वाणु जाउ सोयरइँ सत्त णिवसेवि आउ ॥६ मेरुहे पुन्वें खेमारीहें णिय-विहि-ओहामिय-सुरपुरीहें ॥७ पउमावइ-गन्भे गुणाहिगुत्तु णरवइहें विमलवाहणहों पुत्तु ॥ ८ मुहयन्द-रुन्दु सिरिचन्द-णामु थिउ माणुस-वेसें णाई कामु ॥९ वहु-कालु करेवि मणोजु-रज्जु पुणु चिन्तिउ मणे परलोय-कन्जु ॥१०
॥ चत्ता॥ णिय-पुत्तहों पशु णिवन्धेवि दिहिकन्तहों सुन्दरैमइहें । तव-चरणु लइउ सिरिचन्देण पासें समाहिगुत्त-जइहें ॥ ११
[१४] सो सिरिचन्दे-साहु अ-परिग्गहु घण-मलकञ्चुअ-भूसिय-विग्गहु ॥ १ णिरु णिरुवम-रयणं-त्तय-मण्डणु पञ्चेन्दिय-दुद्दम-दणु-दण्डणु ॥२ पञ्च-महावय-भारुद्धारणु मास-पक्ख - छट्टम - पारणु ॥ ३ कन्दर-पुलिगुजाण - णिवासणु राग-दोस -भय - मोह-विणासणु ॥४ एकु चित्तु सुंह-भावण-भावणु किय - सासण वच्छल्ल - पहावणु ॥ ५ ॥ वहु-कालें अवसाणु पवण्णउँ गम्पिणु वम्भलोऍ उप्पण्णउँ ॥ ६ सुरवर - णाहु विमाणे विसालऍ मणि-मुत्ताहल - विदुम - मालऍ ॥७ ..
॥घत्ता ॥ तहिँ तियसाहिव-सिय माणेवि दस - सायरेंहिँ गएहिँ चुउ । उप्पण्णु एत्थु एह राहउ दसरह-रायहाँ पढम-सुउ ॥ ८
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- 13 1 Ps °ण. 2 PS A °उ. 3 A °उ°. 4 P मुयदतुंदु, मुहयंदतुंदु, A मुहयंद, चंदु. 5A पुणु. 6 P सुंदरमयहो, S सुरसुंदरहो. 7 PS सिरचं सिरिचंदणेण• 8 P°तुजइहोः ___ 14. 1 P S रिसिचंदु. 2 PS °णु. 3 A णिरु सुह. 4 P °उ.
[१३] १. पद्मरुचिश्रेष्ठिपुत्रः देवो भूत्वा. २ विजयार्धगिरि.
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