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________________ २३४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० ११, १-१०, १२,१-९ [११] तं णिसुणेवि अक्खइ वणि-तणुरुहु "एत्थु पएसें एक मुउ अणडुहु ॥१ . तहों णवकार पञ्च मइँ दिण्णा जे पणतीसक्खर-सम्पुण्णा" ॥२ तं ऍउ सयलु वि णिऍवि चिराणउँ गउ विम्हग्रहों सरेवि कहाणउँ ॥ ३ 3 तो सिरिदत्ता-सुऍण सुवीरें रहसाऊरिय-सयल-सरीरें ॥४ "सो गोवइ हउँ" एव चवेप्पिणु कर-मउलजंलि तुरिउ करेप्पिणु ॥५ हार-कडय-कडिसुत्तेहिँ पुजिउ मुह व सु-सीसें कुमइ-क्विजिउ ॥ ६ : "ण वि तं करइ पियरुण वि मायरि ण वि कलत्तु ण वि पुत्तु ण भायरि ॥७ ण वि सस दुहिय ण मित्त ण किङ्कर. सहसणयण-पमुह वि ण वि सुरवर ॥ ८ "जं पइँ मैहु सुहि-इटु समारिउ णरय-तिरिय-गइ-गमणु-णिवारिउ ॥९. ॥ घत्ता ॥ जं दिण्णु समाहि-रसायणु तेत्थु 'विहुरे पइँ णिरुवमउ । तहों फलेंण णरिन्दहों णन्दणु पुणु एत्थु जे पुरे हूउँ हैउँ ॥ १० [१२] is जं उवलद्धडे मइँ मणुअत्तणु अण्णु वि एहु विहडउ वड्डत्तणु ॥१ । जं थुव्वमि - णरवर - सङ्घाएं तं सयलु वि ऍउ तुज्झु पसाएं ॥२ । लइ णीसेसु रज्जु सिंहासणु हउँ तउ दासु पडिच्छिय-पेसणु" ॥ ३ एवमाइ संभावि वणि -वर पुणु णिउ णिय-राउलु जण-मणहरु॥४ विण्णि वि जण णिविट्ठ एक्कासणे चन्दाइच्च णाइँ गयणङ्गणें ॥ ५ ॥ इन्द -पडिन्द व सुन्दर-देहा अवरोप्परु परिवड्डिय-णेहा॥ ६ विणि वि जण सम्मत्त-णिउत्ता सावय-वय-भर-धुर-संजुत्ता ।। ७. विहि वि करावियाइँ जिण-भवणइँ उण्णय -सिहरल्लड्डिय - गयण ॥८. ॥ पत्ता ॥ जिह सायर-सिरिमणि-रयणहिँ जिह कुलवहु गुणेहिँ वरहिँ। जिह सुकह सुहासिय-वयणेहिँ तिह महि भूसिय जिर्णहरेंहिँ ॥९ __11. 1 A °उ°. 2 P S °उं. 3 P S A विं. 4 Ps °यु. 5 P सुट्ट, 3 सुहु. 6 P साहु', 5 महु. 7 Ps °रयणु. 8 P S A °रि. 9 P A °. 10 PS हूयड. 11Rs omit हउं. 12. 1 Ps °3. 2 P °cपु. 3 A °5. 4 A °रु. 5 P 3 बहुगुणेहिं. 6 A जिणभवणेहिं [११] १ वृषभः. २ आपदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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