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क०९,१-१०,१०,
उत्तरकण्डं-चउरासीमो संधि [२३३
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तं गोइन्दु णिऍवि चडुलगहों मेरु-तणउ ओयरिउ तुरङ्गहों ॥ १ पासु पढुक्केवि तहों कण्णन्तरे दिण्ण पञ्च णमुंकार खणन्तरें ॥२ तहों फलेण जिण:- सासण -भत्तहों गन्भन्भन्तर तहाँ सिरिदत्तहाँ ॥३ जाउ पुत्तु परिवड्डिय-छायों वसहद्धउ तहों छत्तच्छायहाँ ॥४ । एकहिँ दिणे गन्दणवणु जन्तंड णिय चिरु मरण-भूमि सम्पत्तउ ॥५ थिउ णिञ्चलु जोयन्तु णिरन्तर सुभरिउ सयलु वि णियय - भवन्तरु॥६ दिसउ णिऍवि गउ परम-विसायहाँ पुणु उत्तरिउ अणोर्वम -गोयहाँ ॥ ७ "एत्थु आसि अणडुहु हउँ होन्तउ एत्थुपएसें" आसि" णिवसन्तउ ॥ ८ इह चरन्तु इह सलिलु पियन्त इह णिवडिउ चिरु पाणकन्तुउ ॥ ९ ॥
. ॥घत्ता ॥ तहिं काले कण्णे महु केरऍ जेण दिण्णु जवु जीव-हिउ । पेक्खेमि केणोवाएण(१)" एम सुइरु चिन्तन्तु थिउ ॥ १०
[१०] पुणु सहसा उत्तुङ्गु विसालउ सेत्थु कराविउ परम - जिणालउ ॥ १ ॥ णियय-भवन्तरु पडें वि लिहावेवि वार-पएसें तासु वन्धावेवि ॥ २ थवेवि अणेय सुहड परिरक्खणु गउ राउलु कुमारु बहु - लक्खणु ॥३ एक्कहिं दिणे पउमरुइ महाइउ वन्दणहत्तिएँ जिणहरु आइउ ॥४ दि8 ताव पढे लिहिय-कहन्तर विम्भिउ जोवइ जाव णिरन्तर ॥ ५ तावारक्खिएहिँ दुव्वारहों कहिउ गम्पि तहाँ राय - कुमारहों ॥ ६ ॥ सो वि इट- सङ्गम - अणुराइउ झत्ति परम-जिण-भवणु पराइउ ॥ ७ दिड तेणं पडे वितुं णियन्तउ अचल-दिहि वर - विम्हय - वन्तउ ॥ ८
• ॥ घत्ता ॥ पुणु वसहद्धएण पपुच्छिउ णिय-सिय-वंसुद्धारणेण । "एहुँ पहुँ णिएवि तउ हूअउ कोऊहलु किं कारणेण" ॥९
9. 1 P°3. 2 P उअ°, SA उ. 3 P S क, A °क्कि. 4 P s °व'. 5 A हि. 6. वि.• 7 P°उ. 8 P तहोत्तिम', Sणं उत्तिम. 9 P A °°, s°डू. 10 PA सि, 8 सें. 11 P णिविं, s व. 12 A उं. 13 P S सो पेक्खे (s क्खि ).
10. 1 P . 2 पहाइउ, s परायउ. 3 s दिट्ठ. 4 PS °3. 5A लिहिड. 6 PSA °डि. 7 PS चि. 82°चित्तठ. 9 Ps एह. 10 P. 11 PS कोउहल्ल. [९] १ भम्. २ पङ्कजरुचिः. ३ वृषभध्वजः. ४ राशः. ५ हस्तीतः. ६ वृषभः. ७ जाप्यम्,
पड०२०३०
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