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क०५,१-९,६,१-१०]
उत्तरकण्डं-चउरासीमो संघि [२११
मारुय-वाहण-हरिण-संमाणा विण्णि वि मिग पुण्णाउ-पमाणा ॥१ तहिँ वि ताहें कारणेण विरुज्झवि मरणु पत्त अवरोप्परु झुञ्ोविं ॥२ जाय महिस जम-महिस-भयङ्कर पुणु वराह अण्णोण्ण-खयङ्कर ॥ ३ पुणु अञ्जण-गिरि-गरुअ महागय कण्ण-पवण-उड्डाविय-छप्पय ॥ ४ । पुणु 'ईसाण-विसोरु-धुरन्धर उण्णय-कंउअ थोर-थिर-कन्धर ॥ ५ पुणु 'विसदंस घोर पुणु वाणर पुषु विग पुणु कसणुजल मिगवर ॥ ६ पुणु णाणाविह अवर वि थलयर पुणु कमेण णहयर पुणु जलयर ॥७ अइ-दूसह-दुक्खइँ विसहन्ता एकमेक-सामरिस-वहन्ता ॥ ८
॥ घत्ता ॥ भवे एव भमन्ति भयङ्करें पुव्व-वइर-सम्वन्ध-पर । तें कजें जगें रिण-वइरइँ जो ण कुणइ सं(?) वियड्ड पर ॥९
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तो धणदत्तु वि सुटुम्माहिउ मल-धूसरु तिस-भुक्खहिँ वाहिउ ॥१ देसें देसु असेसु भमन्तउ दूरागमण-परीसम-सन्तउ ॥
२ is पत्तु जिणालउ रयणिमुहन्तरें लग्गु चवेवऍ णिविसब्भन्तरें ॥३ "अहाँ अहाँ सुकिय-किय पव्वइयहों महु तिस-छुहै-महवाहिं लइयों ॥४ देहुँ कहि मि जइ अत्थि जलोसहु जं कारणु महन्त-परिओसहों" ॥५ विहसेंवि चवइ पहाण-मुणीसरु "सलिलु पिएवऍ को किर अवसरु ॥६ मूढ हियत्तणेण तउ सीसइ । जहिँ अन्धारऍ किं पि ण दीसइ ॥ ७ ॥ सूरत्थवृणहों लग्गेवि दिढ-मणु जहिँ भविय-यणु णं भुञ्जइ भोयणु ॥८ जहिँ पर-गोयरु अत्थि पहूअहँ पेय-महग्गह-डाइणि-भूअहँ ॥ ९ ।।
॥ पत्ता ॥ . अइ-पीडियह मि वर-वाहिएँ ण लइजइ ओसह वि जहिँ।
इये सव्वरि-समऍ दुसश्चरें किह परिपिज्जइ सलिलु तहिँ ॥ १० ॥ 5. 1 P झिय, S A °ज्झिवि, 2 P झेवि corrected as झिय.
6. 1 P सुदु', 5 सद्ध. 2 PS °णु. 3 A °पिय°. 4 P S दुह. 5A °हे. 6 PS भवियणु णउ. 7 A इउ महु.
[५] १ ईश्वरवृषमेव बलीवौं. २ कुकुद स्कंधः। टाठि (?). ३ बिराल. ४ मेटिह. (H. मेडिया). ५ स विचक्षणः: ' [६] खेददुर्बलः. २ कथयितुम्. ३ सुकृतं प्रियं रोषाम् . ४ रात्रि.
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