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२३०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क० ३,२-१३, ४,१-९ तो पुरै तहिँ में अवरु णिरु वहु-धणु वणि-तणुरुहु कुमारि-गेण्हण-मणु ॥२ सिरि-कन्तु व सिरिकन्तु पसिद्धउ वर-सिय-सम्पर-रिद्धि पसिद्धउ ॥३ तासु जणणि सुंय देवि समिच्छइ थोव-धणों चिर-वरहों न इच्छइ ॥४ एह वत्त णिसुणेवि वसुदत्तें पंढम-सहोयर-अणयाणन्तें ॥५ सुहि-जण्णवलि-दिण्ण-उवएसें परिहिय-णव- जलयासिय-वासें ॥ ६ फुरिय-दट्ट-ओट्ठभड-वयणे चलिय-गण्ड-भू-भङ्गुर-णयणें ॥ ७ णिरु-णीसई-चलण-संचारें सिहि-सिह-णिह-असिवर-फर-धारें ॥८ मन्दिरं-पासुजाणे पैमाइउ गम्पिणु रणि-समएँ सम्भाइउ ॥ ९
आयावि आहउ असि-घाएं “णाइँ महीहरु असंणि-णिहाएं ॥ १० 10 तेण वि दुण्णिरिक्ख-तिक्खग्गें ताडिउ णेन्दा-णन्दणु खग्गे ॥ ११ विणि वि वण- विणित्त रहिरोलिय णं फग्गुणे पलास पप्फुल्लिय ॥ १२
॥ घत्ता ॥ तो ताव एव वहु-मच्छर जुज्झिय उज्झिय-मरण-भय । जा पाण विहि मि सम-धाऍहिँ विहुरे कु-भिच्च व मुऍवि गय ॥ १३
[४] पुणु उत्तुङ्ग-विसाल-पईहरें जाय वे वि मिग विझ-महीहरें ॥१ धणदत्तु वि गुणवइ अ-लहन्तउ भाइहें तणउ दुक्खु अ-सहन्त ॥२ मुऍवि णियय-घर सुटु रमाउलु गउ पुरवरहों देस-भमणाउलु ॥ ३ वाल वि णिय-मणे तहों अणुरत्ती सयलावर वर वरहँ विरत्ती ॥ ४ १० धणदत्तहाँ गमणे विच्छाइय जणणे अण्ण णिओयहाँ लाइय ॥५
छाइय अइ-रउद्द-परिणामें सिहि व पलिप्पइ साहुहुँ णामें ॥ ६ . णियवि मुणिन्द-रूवु उवहासइ कडुयक्खर-खर-वयणई भासइ ॥७ अक्कोसइ णिन्दइ णिब्भच्छइ जइण-धम्म सुइणे वि ण इच्छइ ।। ८
॥ घत्ता ॥ वहु-कालें अट्ट झाणेण पुण्णाउस अवसाणे मय ।
उप्पण्ण तेत्थु पुणु काणणे जहिँ वसन्ति ते वे वि मय ॥९ । 3. 1 Ps °उद्ध. 2 P S अंजणसिद्ध°, A °णीद्ध. 3 Ps °हि°. 4 PS °रे. 5 28 °सि'.
4. 1 A °उं. 2 P S A °हि. २ विष्णुरिव. ३ पी(? पु)त्री. ४ ज्येष्टभ्रातुः अनाज्ञातेन. ५ कृष्णवस्त्रं परिहित्वा. ६ प्रमादी. ७ विद्युत्. ८ श्रीकान्तेन. ९ वसुदत्तु, १० विनिर्गत. [१] १ मृत.
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