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क०,१-९; २, १-९,३,१]
उत्तरकण्ड-चउरासीमो संधि [२२९
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अण्णु वि जिय-रयणियराहवेण अण्णहिँ जम्मन्तरें राहवेण ॥१ कहें गुरु किउ सुकिउ काइँ एण एवड्ड पहुत्तणु पत्तु जेण ॥ २ अण्णु वि धारायर-वंस-सारु • परमागम-जलणिहि-विगय-पारु ॥ ३ दसान्धरु तरणि व दोस-चत्तु किह मूढउ पेक्खेंवि पर-कलत्तु ॥४ जो ण वि आयामिउ सुरवरेहिँ विसहर-विज्जाहर-णरवरेहिँ ॥५ सो दहमुहु कमल-दलक्खणेण किह रणे विणिवाइउ लक्खणेण ॥ ६ मेल्लेप्पिणु णिय-भायरु महन्तुं हउँ किह हरि-वलहँ सणेहवन्तु ॥ ७ किह भामण्डलु सुग्गीउ एहु रामोवरि वड्डिय-गरुअ-णेहु ॥ ८
॥घत्ता॥ अण्णहिँ भवें जणयहाँ दुहिअऍ काइँ कियइँ गुरु-दुक्किय। जें जम्महों लग्गेवि दुस्सह. पत्त महन्त-दुक्ख-सयइँ' ॥९
[२] तं णिसुणेप्पिणु हय-मयरद्धउ कहइ सयलभूसणु धम्मद्धउ ॥ १ 'इह जम्बूदीवहाँ अब्भन्तरें भरह-खेत्ते दाहिण-कंउहन्तरें ॥२
खेमउरिहें जयदत्तु वणीसरु चाव-वडाउ णाइँ कोडीसरु ॥३ तहों सुणन्द पिय पीण-पओहर णं धणयहाँ धणएवि मणोहर ॥४ तहाँ धणदत्तु पुत्तु पहिलारउ पुणु वसुदत्तु वीउ दिहि-गारउ ॥ ५ तहों जण्णवलि-णाउ सुंहि दियवरु सायरदत्तु अवरु पुरें वणिवरु ॥६ रयणप्पह-पिय-गेहिणि-वन्तउ तहाँ गुणवइ सुअ सुउ गुणवन्तउ ॥ ७ विणि वि णव-जोव्वण-पायडियइँ सुरवर इव छुडु सग्गहों पडियइँ ॥८ एक-दिवसें परमुत्तम-सत्तें सावरदत्तु वुत्तु णयदत्तें ॥९
॥ पत्ता ॥ "तरुणीयण-मण-धण-शेणों अहिणव-जोव्वण-धारोहों। तुह तणिय तणय धणदत्तों दिजउ सुयहों महाराहों" ॥ १०
[३] तण्णिसुणेबि वड्डिय-अणुराएं दिण्ण वाय तहों गुणवइ-ताएं ॥१. 2 PS रामाउरि. 3 PS A °3. 4 Ps °हे. 2. 1 P S °u. 2 A °य. 3 PS र°. [१] १ राक्षस. . [२] १ दिशान्तरे. २ मित्रः.
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वाचाबन्धः.
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