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क० १७, १०, १८, १-९, १९, १-११] उत्तरकण्डं-तेआसीमो संधि [२२७
॥ घत्ता॥ मह विसय-सुहेहि पैजत्तउ छिन्दमि जाइ-जरा-मरणु । णिविण्णी भव-संसारहों लेमि अज्जु धुवु तव-चरणु' ॥१०
[१८] एम ताऍ ऍउ वयणु चवेप्पिणु दाहिण-करण समुप्पाडेप्पिणु ॥१ णिय-सिर-चिहुर तिलोयाणन्दही पुरउ पघल्लिय राहव-चन्दहों ॥२ केस णिएवि सो वि मुच्छंगउ पर्डिऊणाइँ तरुवरु मरु-आहउ ॥ ३ महिहिं णिसण्णु सुट्ट णिच्चेयणु जाव कह वि किर होइ स-चेयणु ॥४ ताव णियन्तहँ जिण-पय-सेवहँ विजाहर भूगोयर-देवहँ ॥५ सीयऍ सील-तरण्डएँ थाऍवि लइय दिक्ख रिसि-आसमें जाऍवि ॥ ६ ॥ पासें सव्वभूसण-मुणिणाहों णिम्मल-केवल-णाण-सणाहहों ॥७ जाय तुरिउ तव-भूसिय-विग्गहु मुक्क-सब्ब-पर-वत्थु-परिग्गहु ॥ ८
॥घत्ता ।। एत्थन्तरे वलु उम्मुच्छियउ जो रहु-कुल-आयास-रवि । तं आसणु जाव णिहालइ . जणय-तणय तहिँ ताव ण वि ॥ ९ ॥
[१९] पुणु सव्वाउ दिसाउ णियन्तउ उद्विउ 'केत्तहें सीय' भणन्तउ ॥१ केण वि स-विणएण तो सीसइ ‘पवरुज्जाणु एउ जं दीसइ ॥२ इह णिय-सुरेंहिँ सुसीलालतिय मुणि-पुङ्गवहाँ पासु दिक्खकिय ॥ ३ तं णिसुणेवि रहु-णन्दणु कुद्धउ जुअ-खएँ णाइँ कियन्तु विरुद्धउ ॥ ४ ॥ रत्त-णेत्तु भउहा-भङ्गुर-मुहु गउ तहों उज्जाणहों सवडंमुहु ॥ ५ गएँ आरूढउ मच्छर-भरियउ वहु-विजाहरेहिँ परियरियउ ॥ ६ उब्भिय-ससि-धवलायववारणु दाहिण-करें कय-सीर-प्पहरणु ॥७ 'जं किउ चिरु मायासुग्गीवहों • जं लक्खणेण समर दहगीवाँ ॥८ तं करेमि वड्डिय-अवलेवहँ वासव-पमुह-असेसहँ देवहँ' ॥९ सहुँ णिय-भिच्चेहिँ एव चवन्तउ तं महिन्द-णन्दणवणु पत्तउ ॥ १० पेक्वेवि णाणुप्पण्णु मुणिन्दहाँ वियलिउ मच्छरु सयलु णरिन्दहों ॥ ११ 18. 1 PS सहावहो. 19. 1 PS 'म'. 2 PS A इ. 3 Ps वि पह
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३ पूर्यताम् .
[१८] १.तया.
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