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________________ २२४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० ११,५-९, १२, १-९,१३, १-६ चडिये राय आया गिव्वाण वि इन्द-चन्द-रवि-हरि-वम्भाण वि ॥ ५ इन्धण-पुजे चडिय परमेसरि णं संठिय वय-सीलह उप्परि ॥ ६ 'अहो देवहाँ महु तणउ सइत्तणु जोएजहों रहुवइ-दुकृत्तणु ॥ ७ अहो वइसाणर तुहु मि डहेजहि जइ विरुआरी तो म खमेजहि ॥८ ॥ घत्ता ॥ किउ कलयलु दिण्णु हुआसणु महि ले जाय सम-जालडिय । सो णाहिँ को वि तहिँ अवसरे, जेण ण मुक्की धाहडिय ॥ ९ [१२] . . खड-लक्कड-विच्छड्डु-पलित्तएँ चाहाविउ कोसलऍ सुमित्तएँ ॥१ " धाहाविउ सोमित्ति-कुमारे 'अजु माय मुअ महु अवियारें' ॥२ धाहाविउ भामण्डल-जणऍहिँ धाहाविउ लवणकुस-तणऍहिँ ॥ ३ धाहाविउ लङ्कालङ्कारें धाहाविउ हणुवन्त-कुमारें ॥ ४ धाहाविउ सुग्गीव-णरिन्दें धाहाविउ महिन्द-माहिन्दे ॥ ५ धाहाविउ सव्वेंहिँ सामन्तेहि रामहो धिद्धिक्कार करन्तेंहिँ ॥ ६ । धाहाविउ वइदेहि-कएं विहिँ लङ्कासुन्दरि-तियडाएविहिँ ॥ ७ उद्ध-मुहेण पवड्डिय-सोएं धाहाविउ णायरिएं लोएं ॥८ ॥ घत्ता॥ 'णिगुरु णिरासु मायारउ दुक्किय-गारउ कूर-मइ । णउ जाणहुँ सीय वहेविण रामु लहेसइ कवण गई' ॥९ [१३] थिउ एत्थन्तरे कारणु भारिउ णिरवसेसु जगु धूमन्धारिउ ॥१ जालउ विप्फुरन्ति तहिँ अवसरें णं विजुलउ जलय-जालन्तरें ॥२ सीय सइत्तणेण णउ कम्पिय 'ढुकु ढुकु सिहि' एम पजम्पिय ॥३ "एहु देहु गुण-गहण-णिवासणु डहे डह जइ सच्चउ जे हुआसणु ॥४ 1 डहें डहें जइ जिण-सासणु छड्डिउ डहें डहें जइ णिय-गोत्तु ण मण्डिउ ॥ ५ डहें डहे जइ हउँ केण वि ऊणी डहें डहें जइ चारित्त-विह्वणी ॥ ६ दहि, 11. 1 A °या. 2 A य. 12. 1 P S A °उ. 2 P °कारेंहि, s केसहि. 3 P रेहि, s° रेहि. 4 P°दहि, 5 Ps °णलणीलमहिंदहिं (s हि). 6 P S A °कए. 7 P हिंवि, s हिवि. 8 7 दुरा. 13. 1 P जलण°, s°लयउ जल. [१२] १ सीतानिमित्ते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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