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क० ९,३-९,१०,१-९, ११, १-४] उत्तरकण्डं-तेआसीमो संधि [२२३ उवलु अपुजु ण केण वि छिप्पइ तहिँ जि' पडिम चन्दणेण विलिप्पइ ॥ ३ धुजइ पाउ पड जइ लग्गइ कमल-माल पुणु जिणहों वलग्गइ ॥४ दीवउ होइ सहावें कालउ वट्टि-सिहऍ मण्डिजइ आलउ ॥ ५ णर-णारिहिँ एवडउ अन्तरु मरणे वि वेल्लि ण मेल्लइ तरुवरु ॥६ ऍह पइँ कवण वोल्ल पारम्भिय ___ सइ-वडाय मइँ अँजु समुन्भिय ॥ ७ तुहुँ पेक्खन्तु अच्छु 'वीसत्थउ डहउ जलणु जइ डहेवि समत्थउ ॥ ८
॥धत्ता॥ किं किज्जइ अण्णे दिवें जण वि सुज्झई महु मणहों। जिह कणय-लोलि डाहुत्तर अच्छमि मज्झें हुआसणहों' ॥९
[१०] सीयहें वयणु सुणेवि जणु हरिसिउ उच्चारउ रोमञ्च पदरिसिउ ॥१ महुर-णराहिव-नस-लीह-लुहणे हरिसिउ लक्खणु सहुँ सत्तुहणें ॥२ तिणि वि विप्फुरन्त-मणि-कुण्डल हरिसिय जणय-कणय-भामण्डल ॥३ हरिसिय लवणकस दुस्सील वि हरिसिय वजजङ्घ-णल-णील वि ॥४ तार-तरडा-रम्भ-विससेण वि दहिमह-कमय-महिन्द-ससेण वि॥५ गवय-गवक्ख-सङ्घ-सकन्दणं चन्दरासि-चन्दोयर-णन्दणं ।। ६ लाहिव-सुग्गीवङ्गङ्गाय
जम्बव-पवणञ्जय-पवणगय ॥ ७ लोयवाल-गिरि-णइउ समुद वि विसहरिन्द अमरिन्द णरिन्द वि ॥८
|| घत्ता ॥ तइलोकन्भन्तर-वत्तिउ सयलु वि जणवउ हरिसियउ । पर हियवएँ कलुसु वहन्तउ रहुवइ एकु ण हरिसियउ ॥ ९
[११] सीयएँ जं जें वुत्तु अवलेवें तं जि समत्थिउ पुणु वलएवें ॥ १ कोक्किय खणय खणाविय खोणी हत्थ-सयाइँ तिण्णि चउ-कोणी ॥२ पूरिय खड-लक्कड 'विच्छड्डेहिँ कालागुरु-चन्दण-सिरिखण्डहिँ ॥ ३ 25 देवदारु-कप्पूर-सहासेहिँ कञ्चण-मञ्च रइय चउ-पासेंहिँ ॥४
9. 1 । तहि पडिमा, S ताहि पडिम. 2 P अन्नई, 8 अण्णइ. 3 PS जे. 4 P S 'हो. - 10. 1 A सुस्सील'. 2 P घु. 3 P S °लु. 4 PS °णु.
[९] १ पाषाणः. २ कथा. ३ सतीपताका. ४T अद्य सम्यगुद्धरामि. ५ विस्रब्धः [१०] १ ऊर्दाकारः. [११] १ गāण. २ गर्ता, T खड्डा. ३ काष्ठसमूहै:
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