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________________ क०५, १-९;६, १-९;७, १-२] उत्तरकण्डं-तेआसीमो संधि [२२९ [५] तं णिसुणेवि रहुवइ.परिओसिउ 'एव होउ' हक्कारउ पेसिउ ॥१ गउ सुग्गीउ विहीसणु अङ्गउ चन्दोयर-णन्दणु पंवणङ्गउ ॥२ पेसिउ पुप्फ-विमाणु पयट्टउ • णं णहयल-सरें कमलु विसट्टउ ॥ ३ पुण्डरीय-पुरवरु सम्पाइय' दिट्ट देवि रहसेण ण माइय ॥४ 'णन्द वड्ड जय होहि चिराउंस विणि वि जाहें पुत्त लवणङ्कस ॥ ५ लक्खण-राम जेहिँ आयामिय सीहहिँ जिह गइन्द ओहामिय ॥ ६ रक्खिय णारएण समरङ्गण • तेहि मि ते पइसारिय पट्टणे ॥७ अम्हइँ आय तुम्हे-हक्कारा दिअहा होन्तु मणोरह-गारा ॥८ ॥ घत्ता ॥ चडु पुप्फ-विमाणे भडारिएँ मिलु पुत्तहँ पइ-देवरहँ। सहुँ अच्छहिँ' मझें परिट्ठिय पिहिमि जेम चउ-सायरहँ' ॥ ९ तं णिसुणेवि लवणकुस-मायएँ वुत्तु विहीसणु गग्गिर-वायएँ ॥१ 'णिटुर-हिययहों अ-लइय-णामहाँ जाणमि तत्ति ण किजइ रामहों ॥२ घल्लिय जेण रुवन्ति वणन्तरे डाइणि-रक्खस-भूय-भयङ्करें ॥ ३ जहिँ सर्ल-सीह-गय-गण्डा वव्वर-सवर-पुलिन्द-पयण्डा ॥ ४ जहिँ वहु तच्छ-रिच्छ-रुरु-सम्बर स-उरग-खग-मिग-विर्ग-सिव-सूयर ॥ ५ जहिँ माणुसु जीवन्तु वि लुच्चइ विहि कलि-कालु वि पाणहुँ मुच्चइ ॥ ६ तहिँ वणे घल्लाविय अण्णाणे एवहिँ किं तहाँ तणेण विमाणे ॥७ ॥ घत्ता ॥ जो तेणं डाहु उप्पाइयउ पिसुणालाव-मरीसिऍण । सो दुक्करु उल्हाविजइ मेह-सएण वि वरिसिऍण ॥ ८ • [७] जई वि ण कारणु राहव-चन्दें तो वि जामि लइ तुम्हहँ छन्दें' ॥१ एवं भणेवि देवि जय-सुन्दरि कम-कमलहिँ अच्चन्ति वसुन्धरि ॥२ 5. 1 PS A °ण. 2 P S °ले सर. 3 P S °र. 4 A अम्हि आय तुम्हह. 6 P सुहुँ, s सुंदु.. 7 P मि. 6. 1 PS °निग. 2 P S जहि. 3 P°हि°, s 'हि. [५] १ विराही. २ हनूमंतु.. [६] १ लुच्यते. २ विधिः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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