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क० १, १–१०; २, १–९]
लवणङ्कुस कुमार वलहदें झल्लर-पडह-भेरि-दंड-हिं रामु अणङ्गलवणु रहें एक हिं वज्जजङ्घ थिउ दुद्दम चारणें जय-जयकार भड सङ्घाएं tras रहसें अ ण माइउ पेक्खवि ते कुमार पइसन्ता सीया - णन्दण-रूवालोयणे का वि देइ अहरुलऍ कज्जलु
[ ८३ तेआसीम संधि ] लवणस पुरें पसारेंवि जिय-रयणियर- महाहवेंण ।
व देहि दुज्जस भीयऍण
दिवु समोडुिंड राहवेंण ॥ [१]
पुरें पइसारिय जय-जय- सद्दे ॥ १ वज्जन्तहिँ अवरेहिं अ-सहिं ॥ २ लक्नणु मयणङ्कुसु अण्णेक्कहिँ ॥ ३ वया यदु णाइँ गयणङ्गणे ॥ ४ 'राम हों. सुअ मेलाविय आएं' ॥ ५ एकमेक-चूरन्तु पधाइ ॥ ६ णारि ण वि गणन्ति 'पइ सन्ता ॥ ७ लाइ का वि अत्तर लोयणें ॥ ८ काऍ वि घत्ति पच्छऍ अंचल ॥ ९
॥ घत्ता ॥
कि लवण- दंसणेण । स सरें कुसुम सरासर्गेण ॥ १० [२]
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विवरेरउ णायरिया- यणु जगें कामें को विण वद्धउ
आयल करत तरुणी- यणें तहिँ तेहऍ पेमाणें विज्जाहर भामण्डल-णल-णीलङ्गङ्गय जे पैट्ठविय गाम-पुर-देसहुँ णाणा - जाण - विमाणेहिँ आइय दिड रामु सोमित्ति महाउसु सत्हणो विदिताह सुन्दर पुणरवि रामहों कि अहिवन्दण
एत्तउ दोसु पर रहुवइहें म.पमा यहि लोयहुँ छन्देण
[१ १ पतयो विद्यमानाः १ आरातिकं कामपीडा वा.
1. 1Ps दीड 2PA°डि. 3PS °लि.
2. 1 Ps °. 2 P उं.
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उत्तरकण्डं - तेआसीमो संधि [२१९
लवणङ्कुस पइसारिय पट्टणें ॥ १ लङ्काहिव किक्किन्ध पुरेसर ॥ २ जणय-कणय-मरुतणय समागय ॥ ३ गय हक्कारा ताहुँ असेसहुँ ॥ ४ णं जिण - जम्मणें' अमर पराइय ॥ ५ दिट्टु अणङ्गलवणु मयणङ्कुसु ॥ ६ एक्कहिँ मिलिय पञ्च णं मन्दर ॥ ७ 'धण्णउं तुहुँ जसु एहा णन्दण ॥ ८
॥ घत्ता ॥
जं परमेसरि णाहिँ घरें । आवि का वि परिक्ख करें' ॥ ९
२० लाक्षारसम्
३ परिधान वस्त्रम्. २ प्रघट्टके. ३ प्रेषिताः.
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४ मा त्यज ( ? ).
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