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________________ खरदू सण - रावण-घायणेण सय-सूर - समप्पहु णिसिय-धारु खय-जलण- जाल-माला - रउछु ' धवलुज्जलु हरि-करंयलें विहा आयामैवि मेलिउ लक्खणेण आसकिय सुर र जेऽणुरत्त ति पयाहिण णवरसहों देवि पडिवार्ड घत्तिउ लक्खणेण 10 २१८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ 20 हरि आमेल्लई अमरिसेंण वाहिर-विद्धु कत्तु जिह 15 तो सयल-काल-कलिआरएण 'हरि - वह एह कि कवण बुद्धि गुरु-हार वणन्तरें मुक्क देवि पहिलारउ एह अणलवणु वीय मयण एहु देव रिस-वय सुवि महा- वलेहिँ अवरुण्डिय चुम्विय विहिँ वि वे वि लवणङ्कुस लक्खण-राम मिलिय [१८]१ दशशत आरकयुत. [१९] १ आयुधानि युद्धक्रियाश्च. ' [१८] तो लइउ चक्कु णारायणेण ॥ १ दसकन्धर-दारेणु देससयारु ॥ २ कुण्डलें व ाइँ थिउ विसहरिन्दु ॥ ३ वर-कमलहों उपरि कमलु ाइँ ॥ ४ गउ फरहरन्तु - तक्खणेण ॥ ५ 'लइ एवहिँ सीया-सुय समत्त' ॥ ६ थि हरिहें पडीवर करें चडेवि ॥ ७ - पडिवारउ आइड तक्खणेण ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ वज्जजह्रु स इँ भु अ जुऍहिँ वार-वार पोमाइय Jain Education International [क० १८, १–९, १९, १–९ तहों वालों तण्ण पहावइ । परिभमेव पुणु पुणु आवइ ॥ ९ [१९] आन्दु पणचि णारएण ॥ १ णिय- पुत्तं वहेंवि कहिँ लहहाँ सुद्धि ॥ २ उप्पण्ण तणय तहें एथ वे वि ॥ ३ कुल- मण्डणु जयसिरि-वास-भवणु ॥ ४ हूँ हूँ पर तुहि केव' ॥ ५ परिचत्तइँ करणइँ हरि-वलेहिं ॥ ६ कम-कमलहँ णिवडिय ताम ते वि ॥ ७ चउ सायर एकहिँ णाइँ मिलिय ॥ ८ ・ ॥ घत्ता ॥ 18. 1 P s °रु°. 2 Ps°°.3P sa° 19. 1 Ps °ह. 2 Ps°तु. 3PSA ° हो. 4 Ps गु. अवरुण्डिe जाणइ - कन्तेण । 'महु मिलिय पुत्त पइँ होन्तेंण' ॥ ९ 4 Ps हरेहि . 5Ps° इ. 6 Ps मेलइ. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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