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क० १६, १-९, १७, १-९]
उत्तरकण्डं-बासीमो संधि [२१७
[१६] रहु-णन्दण-णन्दण णन्दणेण धणु अवरु लइउ रिउ-मदणेण ॥१ ज' पलय-वालवमुहाणुकरणु जं विडसुग्गीवों पाण-हरणु ॥ २ सुग्गीवहाँ जेण सु-दिण्ण तार । जें रावणु भग्गु अणेय-वार ॥ ३ तं पवर सरासणु स-सरु लेवि किर विन्धइ आलंक्खिउ करेवि ॥४ रहु खण्डिउ सीयं-सुएण ताव परिओसिय सुर समरेक-भाव ॥५ हउ सारहि आहंय वर तुरङ्ग णं पारावारहों हिय तरङ्ग ॥ ६ पभणिउ अणङ्गलवणेण रामु 'तुहँ जइ उववासेंण हयउ खामु ॥ ७ तो 'वावरु सव्व-परक्कमेण जिय णिसियर एण जि विक्कमेण' ॥८
॥ घत्ता ॥ वलेंण विलक्खिीहूंयऍण. सर-धोरणि मुक्क कुमारहों। वलेंवि पडीवी लग्ग करें णं कुल-बहु णिय-भत्तारहों ॥९
[१७] जिह मुक्त ण दुक्का कोइ वाणु तिह हलु तिह मोग्गरु तिह किवाणु ॥१ तिह मुसलु गयासणि तिह रहङ्गु तिह अवरु वि पहरणु रणे अहङ्गु ॥ २ ॥ लक्खणु वि ताव मेयणकसेणणं रुद्ध महा-गउ अङ्कसेण ॥ ३ आमेल्लइ पहरणु जं. जें जं जें लवणाणुउ छिन्दइ तं जें तं जें ॥४ धणु पाडिउ पाडिउ आयवत्तु हय हयवर सारहि धरणि पत्तु ॥ ५ गयणङ्गणे तो वोल्लन्ति देव "जिय वालेंहि लक्खण-राम केव' ॥६ हासं गउ सुरवर-पउर-विन्दु "हउ अण्णे केण वि णिसियरिन्दु ॥ ७ 20 खर-दूस] सम्वुकुमार जो वि अण्णेण जि केण वि णिहउ सो वि'॥८
॥ घत्ता ॥ जगु जे विरत्तउ हरि-वलहँ सिसु-साहस-पवणुद्धअउ।
गहु महियल पायालयलु सयलु वि लवणङ्कुसिहूअउ ॥ ९ ___16. 1 P जं पलयवालुप, A णं पलयवालुप. 2 PS मालि°. 3 P s 'या'. 4 PS गु. 5 s °हि. 6 P S°हूएण. 17. 1 P °क्क. 2 P S तुट्ट. 3 PS अण्णइ. 4 s°ण. 5 P 8 °ब. Ps °सु. [१६] १ रघुनंदनोऽ[न]रण्यः । तस्य नंदनो दशरथस्तस्य नंदनः रामः तेन. २ यं धनुषं प्रलयकालं सन्मुखं करोति (?). ३ T समुहस्य. ४ व्याप(? पा)रं कुरु. - [१७] १. चक्रः. २ 7 मदनरूपी द्वितीयपुत्रोंकुशनामा तेन. ३ लघुभ्राता. ४T हास्यं गतः,
पउ० च०२८
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