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क० ७,४-९,८, १-९, ९, १-५]
उत्तरकण्डं-बासीमो संधि [२१३ तहों णन्दण लक्खण-राम वे वि वण-वासहों घल्लिय तेण ते वि ॥ ४ गय दण्डारण्णु पइट्ट जीव, अवहरिय सीय रावणेण ताव ॥५ तेहि मि मेलाविउ पमय-सेण्ण हय भेरि पयाणउ णवर दिण्णु ।। ६ वेढिय लङ्काउरि हउ दसासु . पडिवलेंवि अउज्झहिँ किउ णिवासु ॥ ७ . जण-वय-वसेण संई सुद्ध-चित्त णिकारणे काणणे णेवि पित्त ॥ ८ ।।
• ॥घत्ता ॥ वज्जजङ्गु तहिँ कहि मि गउ तें दिट्ट रुवन्ति वराइय । सस भणेवि सङ्गहिय घरें लवणङ्कुस पुत्त "वियाइय' ॥ ९
[८]. तं णिसुणेवि भणइ अणङ्गालवणु 'अम्हाण समाणु कुलीणु कवणु ॥ १ ॥ किउ जेण णवर जणणिहें मलित्तु तहुँ हउँ दवग्गि डहणेक-चित्तु ॥ २ वट्टइ जाणिजइ तहिं जें काले दुद्दरिसणें भीसणे भड-वमालें ॥ ३ जिम लक्खण-रामहुँ पलउ जाउ जिम अम्हहँ विहि मि विणासु आउ ॥४ कहाँ तणउ वप्पु कहों तणउ पुत्तु जो हणइ सो जिवइ रिउ णिरुत्तु ॥ ५ । जाणेवि कुमार-विक्कमु अलङ्घ सुटेरिउ रोसिउ वज्जजङ्घ ॥ ६ ॥ 'जो तुम्हहँ तिहि मि अणिट्ठ पाउ सो महु मिण भावइ पिसुण-भाउ' ॥७ परिपुच्छिउ णारउ परम-जोइ 'एत्थहों अउज्झ किं दूर होइ' ॥ ८ .
॥ घत्ता ॥ कहइ महा-रिसि गयण-गइ तहों लवणहों समरे समत्थहों । 'सउ सट्टत्तर जोयणहँ साकेय-महापुरि एत्थों ' ॥९
[९] वइदेहि णिवारइ देर रुवन्ति ते दुजय लक्खण-राम होन्ति ॥ १ हणुवन्तु जाहँ घरै करइ सेव आरुट्ठहाँ जसु देव वि अ-देव ॥२ सुग्गीउ विहीसणु भिच्च जाहँ ' को रणे धुर धरेवि समत्थु ताहँ ॥३ दसकन्धरु दुद्धरु णिहउ जेहिँ को पहरेवि सक्कइ समउ तेहिँ' ॥४ तं णिसुणेवि लवणङ्कुस पलित्त णं विण्णि हुआसण घिऍण सित्त ॥५ 2 PS. 3 Ps °हि. 4 PS सुविसुद्ध. 8. 1 P°ह. 2 P जे. 3 Ps. 4 P SA °णु. 5 P किहू.
२ वानर. ३ सीता. ४ मा(? जा)ता. [८] १ कामखरूपी प्रथमपुत्रो लवणः. २ अतिशयेन, [९] १ ईप्रत्. २ फारक्कानि,
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