SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० ५,३-९; ६, १-९; ७, १-३ पिहु-पत्थिउ चलणेहिँ पडिउ ताहँ 'रूसेवउ णउ अम्हारिसाहँ ॥३ लइ लवण तुहारी कणयमाल मयणङ्कुस तुहु मित्रङ्गमाल' ॥४ पइसारेंवि पुरवरें किउ विवाहु थिउ वज्जजङ्घ जय सिरि-सणाहु ॥५ तेण वि वत्तीस तणुभवाउ णिय-कण्णउँ दिण्ण स-विन्भमाउ ॥ ६ 5 सयलालङ्कारालतियाउ हल-कमल-कुलिस-कलसकिन्याउ ॥७ सामन्तहँ मिलिय अणेय लक्ख पाइक्कहँ वुज्झिय केण सङ्ख ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ जे अलमल-चल पवल-वल हरि-बल-वलेंहिँ ण साहिय । ते णरवइ लवणकुसेंहिँ . सर्वंसिकरेप्पिणु देस पसाहिय ॥ ९ [६] खस-सव्वर-वव्वर-टक्क-कीर कउवेर-कुरव-सोवीर धीर ॥ १ तुङ्गङ्ग-वङ्ग-कम्भोज-भोट्ट जालन्धर-जवणा-जाण-जह ॥२ कम्भीरोसीणर-कामरूव ताइय-पारस-काहार-सूव ॥ ३ णेपाल-वैट्टि-हिण्डिव-तिसिर केरल-कोहल-कइलास-चसिर ॥४ 15 गन्धार-मगह-मद्दाहिवा वि सक-सूरसेण-मरु-पत्थिवा वि ॥ ५ एय वि अवर वि किय वस विहेय पल्लट्ट पडीवा मेहिलेय ॥ ६ तं पुण्डरीय-पुरवरु पइट्ठ थुउ वजजङ्गु वइदेहि दिट्ठ । ७ तहिँ काले अकलि-कलियारएण पोमाइय वेण्णि वि णारएण ॥ ८ ॥ घत्ता॥ "मडु लएप्पिणु सयल महि किय दासि व पेसण-गारी । पर जीवन्तेहिँ हरि-वलेंहिँ णउ तुम्हहँ सिय वड्डारी' ॥९ [७] तं वयणु सुणेवि लवणकुसेण वोल्लिजइ परम-महाउसेण ॥ १ 'कहि कहि को हरि-वल एउ कवणु' तो कहा कुमारहों गयण-गमणु ॥ २ 25 ‘णामेण अत्थि इक्खाय-वंसु तहिँ दसरहु उत्तम-रायहंसु ॥ ३ 2 s °व. 3 Ps °हु. 4 P S दिण्णउ सविहवाउ. 5 PS °हि. 6 वसि. 6. 1 PS °ढक्क. 2 P S सोंडीर वीर. 3 PS °होज. 4 P 'घट्ट, घट्टि. - तिसिरा, s °तिसार. 6 PS मंड. . 7. 1 PS °त्ति. [५] १ (v. 1. सविहवाउ) T विभवें संयुक्ताः. २ प्रचुर. [६] १ बलात्. [७] १ नारदः. 509 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy