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क०३,१-९,४, १-९,५, १-२]
उत्तरकण्डं-बासीमो संधि [२११
[३] ते' वग्घमहारह-वजा अभिट्ट परोप्परु रणे अलङ्घ ॥ १ वहु दिवस करेप्पिणु संपहारु परियाणेवि पर-वल-परम-सारु ॥२ तो पुण्डरीय-पुर-पत्थिवेण सहूल-महारहु धरिउ तेण ॥ ३ तहिँ काले कुइउ पिहु पिहुल-काउ सामन्त-सयइँ मेलवेवि आउ ॥ ४ एत्तहें वि कुमारेंहिँ दुजएहिँ जयकारिय सीय रणुज्जएहिं ॥ ५ लवणकुस-णाम-प्रगासणेहिँ हत्थ-त्थिय-ससर-सरासणेहिँ ॥ ६ रण-रामालिनिय-विग्गहेहिँ पहरण-पडहत्थ-महारहेहिँ ॥ ७ 'वेढिजइ माएँ ण मामु जाव जाएवंउ अम्हहिँ तेत्थु ताव' ॥८
|| घत्ता ॥ तो वोलाविय वे वि जण जणणिऍ हरिसंसु-विमीसएँ । 'स-गिरि स-सायर-सयल महि भुञ्जेज्जहु महु आसीसऍ' ॥९
[४] आसीस लऍवि विन्नि वि पयट्ट अलमल-वल-मयगल-मइयवदृ ॥ १ । गय तेत्तहें जेत्तहें रणु अलङ्घ जयकारिउ णरवइ वजजङ्क ॥२ 'अम्हेहिँ जीवन्तहिँ दुक्खु कवणु जहिँ अङ्कसु हुअवहु लवणु पवणु ॥ ३ का गणण तेत्थु विहि-पत्थिवेण अवरेण वि पवर-णराहिवेण' ॥४ पहु धीरेंवि भड-कड़मद्दणेहिँ दससन्दण-णन्दण-णन्दणेहिँ ॥५ रहु वाहिउ तूर. वाइयाइँ किउ कलयल सेण्णइँ धाइयाइँ ॥ ६ अभिट्टइँ वलइँ वलुद्धुराई अवरोप्परु चोइय-सिन्धुराइँ॥७ 20 सरवर-सङ्घाय-पवरिसिराइँ रय-रुहिर-महाणइ-हरिसिराइँ ॥ ८
॥ घत्ता ॥ पिहु-पत्थिउ लवणवसेंहिं हेलऍ में परम्मुहु लग्गउ । णावइ झत्ति झडप्पियउ , विहिँ सीहहिं मत्त-महागउ ॥ ९
तहिँ अवसरे समर-णिरवसेहिँ पञ्चारिउ पिहु लवणकसेहि ॥ १ 'कुल-सील-विहूणहुँ ल्हसिय केम वलु वलु दूवागमें चविउ जेम' ॥२
3. 1 Pवे. 2 °व. 4. 1 PS द्ध. 2 PS रसिया . 3 Ps °या. 5. 1 PS °आ. [३] १ भृताः. [४] १ अलं प्रचुरम्.
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