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________________ २०८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १२,८-१०, १३, १-१०, १४, १-५ हा हय-विहि हउँ काइँ विओइय सिव-सियाल-सङ्कलह ढोइय ॥ ८ हा हय-विहि तुहुँ काइँ विरुद्धउ जेण रामु महु उप्परें कुद्धउ ॥ ९ . ॥घत्ता ॥ वरि तिण-सिह वरि वणे वेल्लडिय वरि सिल लोयहुँ पाण-पिय । दूहव-दुरास-दुह-भायणिय उ म. जेही का वि तिय ॥१० [१३] ॥ जम्भेट्टिया ॥ जलु थलु वणु तिणु भुवणु विचित्तउ । जंजि णिहालमि तं जि पलित्तउ ॥ १ भणु भणु भाणु भाणु भू-भावणु. जइ मइँ मणण समिच्छिउ रावणु ॥ २ " वणसइ तुहु मि ताव तैहिँ होन्ती जइयहुँ णिय णिसियरेंण रुवन्ती ॥ ३ णहयल तुहु मि होन्तु तहिँ अवसरे जइयहुँ जिउ जडाउ सङ्गर-बरें ॥४ जइयहुँ रयणकेसि दलवट्टिउ विजा-छेउ करेंवि आवट्टिउ ॥५ वसुमइ पैइ मि दिट्ठ तरुवर-घणे जइयहुँ णिवसियासि णन्दणवणे ॥ ६ अच्छिउ वरुणु पवणु सिहि भक्खरु केण वि वोल्लिउ ण वि धम्मक्खरु ॥ ७ 15 लोयहुँ कारणे दुप्परिणामें हउँ णिक्कारणे घल्लिय रामें ॥८ जइ मुय कह वि सइत्तण-धारी तो तुम्हइँ तिय-हच्च महारी' ॥९ ॥ घत्ता ॥ तं वयणु सुर्णेवि सीयहें तणउ देव-लोउ चिन्तावियउ । णं सइ-सावन्तर-भीयऍण वजजङ्घ मेलावियउ ॥ १० [१४] ॥ जम्भेट्टिया ॥ ताव णरिन्देण स-सुहड-विन्देंण । गयमारूढेण रणे 'णिव्वूढेण ॥१ दिट्ठ देवि रत्तुप्पल-चलणी णह-किरणुज्जोइय-सई-भुवणी ॥२ काय-कन्ति-उण्हविय-सुरिन्दी लोयाणन्द-रुन्द-मुह-यन्दी ॥ ३ 25 णयणोहामिय-वम्मह-वाणी पुच्छिय 'कासु धीय कहाँ राणी' ॥ ४ 'हउँ शिल्लक्खण 'णिज्जण-थामें 'लोयहाँ छन्दें घल्लिय रामें ॥५ .J13. 1 PS तह. 2 PS तइ. 3 PS °ताविउ. 14. 1 5 सइं. 2 PS णिच्छलरामें. [१३] १ Y आदित्यादित्य. २ | पृथ्वीविचारकः. ३ सूर्यः. ४ सतीशापभयेन. [१४] १ समर्थन. २ तापिता इंद्राणी. ३ ' reads सुरद्दी and renders it as सुराद्रिमेरोः. ४ ( reading of P S T ) छलरहितपांडुरेण. ५ लोकापवादेन. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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