SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क०९,९,१०,१-९,११,१-८] उत्तरकण्डं-असीइमो संधि [१९९ ॥ पत्ता ॥ विहि मि फिरन्तर-वावरणे सर-जालु पहावइ। विझहों सज्झहों मझें थिउ घण-डम्बरु णावइ ॥९ [१०] अवरोप्परु वाणहिँ छाइयां अवरोप्परु कह वि ण घाइयउ ॥ १ । अवरोप्परु कवयई ताडियइँ अवरोप्परु चिन्धइँ फाडियइँ ॥२ अवरोप्परु छत्तइँ छिण्णाइँ अवरोप्परु अङ्गइँ भिण्णाइँ ॥ ३ . अवरोप्परु हयइँ सरासण. जल-थलइँ वि जाय 'स-व्वण ॥ ४ . अवरोप्पर सारहि गिट्ठविय स-तुरङ्गम जमउरि पट्टविय ॥५ . अवरोप्परु खण्डिय पवर रह थिय मत्त-गइन्दहि दुव्विसह ॥६ ते महुर-णराहिव-सत्तुहण णं णहयल-लवण स-घण घण ॥ ७ . णं केसरि गिरि-सिहरेंहिँ चडिय णं रावण-राम समावडिय ॥ ८ .... ॥ घत्ता ॥ वे वि स-पहरण सामरिस करिवहिँ वलग्गा । मलय-महिन्द-महीहरेंहिँ णं वर्ण-यव लग्गा ॥९ [११] समुद्धाइया सिन्धुरा जुद्ध-लुद्धा 'वलुत्ताल-दुक्काल-काल व्व कुद्धा ॥१ विमुक्कङ्कुसा उम्मुहा उद्ध-सोण्डा स-सिन्दूर-कुम्भत्थला गिल्ल-गण्डा ॥ २ मयम्भेहिँ सिप्पन्त-पाय-प्पएसा मिलन्तालि-माला-णिरन्धी-कयासा॥३' विसाणप्पहा-पण्डुरिजन्त-देहा वलायावली-दिण्ण-सोह ब्व मेहा ॥४॥ चलन्तेहिँ सञ्चालिओ सेस-णाओ भमन्तेहि पब्भामिओ भूमि-भाओ ॥५ गिरिन्दा समुद्दावलीभाव जाया गइन्देसु तेसुट्टिया वे वि राया ॥ ६ महा-भीसणा भू-लया-भङ्गुरच्छा • पमुक्केकमेकाउहा विजु-दच्छा ॥ ७ करिन्देण ओहामिओ वारणिन्दो कुमारेण ओहामिओ 'माहुरिन्दो ॥ ८ u . . 7. PS °जाल.. 8 P S A संज्झहो. - 10. 1PS A °अउ. 2 P °अउ, A°उ. 3 P SA "हि. 4 P S साहरण. 5A वलया 11. 1 PS A °उ. 2 P 8 A गयं'.. 3 P SA °मु. 4 PS A विज. [१०] १ 'व्रण'='घात' सहितानि. २ दवाग्निरिव. [११.] १ बलोद्धतौ; I' चलत्तालेति पाठे चलोद्धतौ इत्यर्थः. २ अंगारीकृताः दिशाः. ३ T प्रकर्षण भ्रामितः भूमिभानः. ४ ' भूलता. ५ मधुः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy