SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ '[क०३, ७-९,४, १-९,५, १-८ पणवेप्पिणु पभणइ सत्तुहणु 'हउँ देव णिरुत्तउ सत्तु-हणु ॥ ७ जइ महुर-णराहिउ णउ हणमि तो रहुवइ पइ, मि ण जय भणमि ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ पइसइ जइ वि सरणु जमों अहवह जम-वप्पहों। जीय-महाविसु अवहरमि महुराहिव-सप्पहों' ॥९ [४] गजन्तु णिवारिउ सुप्पहऍ 'किं पुत्त पइजा 'सम्पयएँ ॥१ वोल्लिजइ तं जं णिव्वहइ भड-वोकेहि सुहडु ण जउ लहइ ॥२ किं साहसु दिदु ण भायरहुँ . किउ विहिँ में विणासु णिसायरहुँ ॥ ३ " किण्ण मुणिउ णिरुवम-गुण-भरिउ अणरण्णाणन्तवीर-चरिउ ॥४ तउ दसरह-भरहहिँ घोरु किउ इक्खुक्क वंसु ऍहु एम थिउ ॥५ तुहुँ णवर करेसहि जम्पणउ तो वरि जसु रक्खिउ अप्पणउ ॥६ जइ महु उप्पण्णु मणोरहेंण जइ जणिउ जणेरें दसरहेण ॥ ७ तो पउ वि म देहि परम्मुहउ' पडिवक्खु जिणेसहि सम्मुहउ ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ केउ-सुमालालङ्करिय महु-राय-णिवासिणि । पुत्त पयत्तें भुले तुहुँ तं महुर-विलासिणि' ॥ ९ [५] आसीस दिण्ण जं सुप्पहाएँ वद्धारिय-णिय-गुण-सम्पयाएँ ॥१ ॥ तो स-सरु सरासणु राहवेण दिजइ 'णिव्वूढ-महाहवेण ॥ २ लक्खणेण वि धणुहरु अप्पणेउ दससिर-सिर-कमलुक्कप्पणउ' ॥ ३ णामेण कियन्तवत्तुं पवलु सेणावइ दिण्णु समन्त-वलु ॥४ सामन्तहँ लक्खें परियरिउ सत्तुहणु अउज्झहें णीसरिउ ॥ ५ सु-णिमित्तइँ हूअइँ जन्ताहुँ सव्वइँ मिलन्ति सियवन्ताहुँ॥ ६ 25 उक्खन्धे दूरुज्झिय-सिवहाँ गउ उप्परें महुर-णराहिवहाँ ॥ ७ तो मन्तिहिँ पभणिउ सत्तुहणु 'जय णन्द वद्ध वहु-सत्तु-हणु ॥ ८ 3 A हत्तु.4 A भणिय. 5 P जीव. 4. 1 A सुप्पयए. 2 PS जे तं. 3 P S A ह. 4 . . 5 Ps 'रय.. 5. 1 A °उं. 2 PS °त्त. 3 A सोण्णावइ. 4 A महंत°. [४] १T सांप्रतं. २ मथुरा ध्वजामालाऽलंकृता । विलासिन्यपि पुष्पमालाऽलंकृता भवति. ३ मधुराजस्य वसतिर्मथुराऽन्यत्र आधुः कामो रागोऽनुरागस्तयोर्वसातर्विलासिनी, [५] १ दृढः निर्वाइकः संग्रामेण. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy