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________________ क. १,१-९, १३, १-९] उत्तरकण्ड-एक्कूणासीमो संधि [१९३ [१२] करि सम्भरइ भवन्तर जावहिँ पुप्फ-विमाणु चडेप्पिणु तावहिँ ॥१ लक्खण-राम पराइय भायर _णं 'सञ्चारिमै चन्द-दिवायर ॥२ णवर विसल्लासुन्दरि-वीयएँ • भरह-णराहिवो वि सहुँ सीयएँ ॥३ चडिउ महा-गएँ तिहुअणभूसणे सुरवर-णाहु णाइँ अइरावणे ॥ ४ । पुरे पइसन्तें जय-जय-सदें - वन्दिण-वम्भण-तूर-णिणदें ॥५ तो आलाण-खम्भे करें आलिउ अविरलालि-डिलोलि-वमालिट कवलु ण लेइ ण गेण्हइ पाणि कुञ्जर-चरिउ ण केण वि जाणिउ* ॥ ७ कहिउ करिल्लेहिं पङ्कयणाहहाँ 'दुक्कर जीविउ वारण-णाहों' ॥८ ॥ घत्ता ॥ तं गयवरचइयरु सुर्णेवि उप्पण्ण चिन्त वल-लक्खणहुँ । आयउ ताव समोसरणु कुलभूसण-देसविहूसणहुँ ॥९ [१३] रिसि-आगमणु सुर्णेवि 'परमन्तिऍ गउ रहु-णन्दणु वन्दणहत्तिएँ ॥१ गय सत्तुहण-भरह स-जणदण स-तुरङ्गम स-गइन्द स-सन्दण ॥२ ।। भामण्डल-सुग्गीव-विराहिय गवय-गवक्ख-सङ्ख रहसाहिय ॥ ३ स-विहीसण णल-णीलङ्गङ्गय तार-तरङ्ग-रम्भ-पवणञ्जय ॥४ कोसल-कइकइ-केकय-सुप्पह सन्तेउर वइदेहि विणिग्गय ॥ ५ साहुहुँ वन्दणहत्ति करेप्पिणु दस-पयारु जिण-धम्मु सुणेप्पिणु ॥६ पुच्छिउ जेट्ट-महारिसि रामें "ऍहु करि तिजगविहूसणु णामें ॥७ कवलु ण लेइ ण ढुक्कइ सलिलहों जेम महारिसिन्दु कलि-कलिलों ॥८ ॥ घत्ता ॥ कुञ्जर-भरत-भवन्तरई · अक्खियइँ असेसइँ मुणिवरण । केकइ-णन्दणु पव्वइउ सामन्त-सहासें उत्तरेण ॥ ९ mnnamon 12. 1 Pावहि, s जावेहि. 2 s°णे, A °ण. 3 s °य. 4 s A °उं. 5 P करिल्लेहि, s करिल्लिहि, करेल्लिहिं. 13. 1 PS A °इ. [१२] १ प्रचलमान. २ भ्रमरपंक्ति. [१३] १ अत्यादरेण. २ लक्ष्मणमाता. ३ अंतःपुरसहितं. ४ पातकस्य. पउ०च०२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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