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________________ क० २०, १–९; १, १-८ ] रामउरि एह गुण-गारविंय. ऍहु अरुणु गामु कविलहों तणउ' ऍहु दीस सुन्दरि विञ्झइरि • वइदेहि एउ कुव्वर - णयरु ऍड दसउरु जहिँ लक्खणु भर्मिङ ऍह सा गम्भीर समावडिय उहु दीसह सव्व सुवण्ामउ धूवन्त-धवल-धयवड-पउरु • [ ७९. सीय रामहो लक्खणहों बुद्धिहें ववसायों 'विहि किर जम्म-भूमि जणणीऍ सम अणु विसिय हिरेंहिं" । पुरि वन्दिय सिरें "सइँ भुव' करेंवि" जणय-तणय - हरि- हलहरेंहिं * ॥ ९ Mo 20. 1 A. ●णि 7 P. वरेहिं. 1. 1 4 °उं. रामागमण भरहु णीसरियउ अणेत सत्तुहणुस वाहणु छत्त-विमाण-सहासइँ धरियइँ तूर हयइँ कोडि - परिमाणहिं tear रिवसे संब्भइ विडियं एकमेक्क - भिडमाणें हिं कण्णताल - हय-महुअर - विन्दहॉ हरि-वल स-महिल पुप्फ-विमाणहाँ Jain Education International उत्तरकण्ड - एकूणासीमो संधि [१८७ [२०] जा पूयण - जक्ख कारविय ॥ १ जहिँ गलथलाविर अप्पण' ॥ २ जहिँ 'वसिकिउ वालिखिल्लु वइरि ॥ ३ कल्लाणमाल जहिं जांउ णरु ॥ ४ सीहोयर -सीहु समरें दमिउ ॥ ५ जहिं महु कर- पलवें तुहुँ चडिय ॥ ६ णिम्मविउ विही सण णं णवउ ॥ ७ ww पिऍ पेक्खु अउज्झाउरिणयरु' ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ * एकूणासीमो संधि ] मुह-यन्द- णिहालउ भरहु गउ । णं पुण्ण-विहु सवडम्मुहउ' ॥ [१] 2 PA. 3 P S वसे. 8PS सिर, A सिरि. 2 A णियचडि 4PSA. 5 sA रु. 6PSA 9SA भु. 10 P करेहिं. 3 A विलि. 4PS ओवरिउ. * At the end of the, Sandhi: P जुज्झकंड समत्तं ॥ ज्येष्ट वदि १ सोमे; s जुज्झकंड सम्मत्तं ॥ छ ॥ ज्येष्ठ वदि १ सोमे; A बुज्झुकंड समाप्त ॥ ज्येष्ट वदि १ सोमे. [१] r विधिभिः (?) 20 हय-गय-रह- णरिन्द परियरियड ।। १ स-रहसु सालङ्कारु स- साहणु ॥ २ अम्वरें रवि-किरणइँ अन्तरिय हूँ || ३ दुहि दिण्ण गणें गाणेंहिं ॥ ४ रह-गय-तुर ऍहिँ मग्गु ण लब्भइ ॥ ५ पेवेलि जाय जम्पार्णेहिं ॥ ६ भरहाहि उत्तरिउ' गइन्दहों ॥ ७ अवर विणरवइ णिय- णियजाणहीं ॥८ 5 For Private & Personal Use Only 10 15 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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