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________________ १८,१-९,१९,१-९ १८६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [१८] तो भणइ विहीसणु पणय-सिरु थुइ-वयणे-सहासुग्गिष्ण-गिरु ॥१ 'जइ रहुवइ विजय-जत्त करहि तो सोलह वासर परिहरहि ॥२ हउँ जाव करेमि. पुणण्णविय उज्झाउरि सव्व सुवण्णमिय' ॥ ३ 5 वल-लक्खण एव परिदृविय अग्गएँ वद्धावा पट्टविय ॥ ४ पुणु पच्छऍ विज्जाहर-पवर णहयलु भरन्त णं अम्वुहर ॥ ५ ओवुट्ट तेहि कञ्चण-वरिसु किउ पुरवरु लङ्काउरि-सरिसु ॥ ६ घरे घरे णं णव-णिहि सङ्कमिय ॥ ७ पुरे घोसण तो वि परिब्भमइ 'सो लेउ लएवऍ जासु मई' ॥ ८ ॥ पत्ता ॥ तं पट्टणु कञ्चण-धण-पउरु वहइ पुरन्दरणयर-छवि। देन्तउ जे अत्थि पर सयलु जणु जसु दिजइ सो को वि ण वि ॥ ९ [१९] गउ लङ्क विहीसणु भिच्च-वलु सोलहमऍ दिवसें पयट्टु वलु ॥१ 15 स-विमाणु स-साहणु गयण-वहें दावन्तु णिवाण पिययमहें ॥२ 'ऍह सुन्दरि दीसइ मयरहरु ऍह मलय-धराहरु सुरहि-तरु ॥३ किक्किन्ध-महिन्द'-इन्दसईल इह तुलिय कुमार कोडि-सिल ॥४ हउँ लक्खणु एण पहेण गय एत्तहें खर-दूसण-तिसिर हय ॥ ५ इह सम्वु-कुमारहाँ खुडिउ सिरु इह फेडिउ रिसि-उवसग्गु चिरु ॥ ६ ॥ इह सो उद्देसु णियच्छियउ ,जियपोम-जणणु जहिँ अच्छियउ ॥ ७ ऍहु देसु असेसु वि(?) चारु-चरिउ अइवीर-णराहिउ जहिँ धरिउ ॥ ८ ॥ घत्ता । तं सुन्दरि एउ जियन्तउरु जहिँ वणमाल समावडिय। लक्खिजइ लक्खण-पायवहाँ अहिणव वेल्लि णाई चडिय ॥ ९ __18. 1 P S A °णु. 2 P S A °उ. 3 P S पुण्णणमिय, A पुणण्णमिय. 4 P ओवुद्ध, sओ, A रवठ्ठ. 5 The portion from तेहिं (6 a) up to घोसण (8a) is omitted in s. 6 P S °जण'. ____19. 1 P S °दहो इह. 2 PS A °सयल. 3 P'S A हि. 4 P A जहि, s जं. 5 PS A °इ. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary. Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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