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________________ कइराय -सयम्भुएव - किउ पउमचरिउ पञ्चमं उत्तरकण्डं [७८. अट्ठसत्तरिमो संधि] रावणेण मरन्ते दिण्णु सुहु सुरहुँ दुक्खु वन्धव-जणहों। रामों कलत्तु लक्खणहों जउ अविचल रज्जु विहीसणहों ॥ [१] जससेसीहूअऍ दहवयणे पडिवण्णऍ दिणमणि अत्थवणें ॥१ छप्पण्ण-सएहिँ महा-रिसिहिँ तव-सूरहुँ णासिय-भव-णिसिहि ॥२ णामेण साहु अपमेयवलु . थिउ णन्दण-वणे मेरु व अचलु ॥ ३ ॥ उप्पण्णु णाणु तहाँ मुणिवरहों -एत्तहे वि परम-तित्थङ्करों ॥ ४ धण-कणय-रयण-कामिणि-पउरें अइसुन्दर सुन्दररयण-पुरे ॥५ जे वन्दणहत्तिऍ तेत्थु गय ते इह वि पराइय अमर-सय ॥ ६ एत्तहें रहु-तणउ स-साहणु वि एत्तहें इन्दइ घणवाहणु वि ॥ ७ सयलेहिँ वि वन्दणहत्ति किय रयणीयर पुणु वोल्लन्त थिय ॥८ ॥ घत्ता॥ 'तुम्हागमु उग्गमु केवलहाँ आणु एउ देवागमणु । गय-दिवसें भडारा होन्तु जइ तो मरन्तु किं दहवयणु' ॥९ [२] परमेंसरु केवल-णाण-णिहि णिसियरहँ विअक्खइ धम्म-विहि ॥ १ 20 "विसमहों दीहरहों अणिट्ठियहाँ तिहुयण-वम्मीय-परिट्ठियहों ॥ २ को काल-भुषङ्गहाँ उव्वरइ जो जगु जें सव्वु उवसङ्घरइ ॥ ३ 1. 1SA हि. 2 S T रमण'. 3 s A तित्थु. 4 सयले, A सयलेहि. 5 °ति' . 6 s हुंतु. 7 s°ति. 2. 1 s °वम्मीह°. 2.8 उच्च, A उव्वरइं. 3 s °संह'. [१] १ ' नामेदम् . [२] १T विषमस्य. २ वल्मीकः. पउ०च०२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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