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क० १४, ४–१०; १५, १- १०; १८१ ] जहिँ कुलिसाइँ जन्तं सय- सक्करु होइ महण्णवो वि जहिँ 'निष्पर जहिँ अइरावणो विउम्मज्जइ जहिँ णित्ते तरणि णह-मण्डपु जहिँ वुड्डुइ अचलिन्दु समत्थउ कुम्मकडाह-लु वि जहिँ फुझ्इ
जहिं पलय
उणवन्त
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ताव दसाणण-परियणु पइसइ. कमल - महासरेण कमलायर - तीरन्तरें थक्कॆवि' 'अहों विज्जाहर-वंस-पईवहाँ जम्वव-मइसमुद्द - मइकन्तहों रम्भ-विराहिय-तार- तरङ्गहों गवय- गवक्ख-सुसंङ्ख-रिन्दहाँ इन्दइ- कुम्भयण्ण लहु आणहाँ वित्तु सामन्तेंहिं
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ore ण होइ एहु भल्लारउ'
'इन्दइ-राण' तो अम्हारज
poor परक्कम वुझि जिर्णेवि वला वलवन्तहाँ
जुज्झकण्डं - सत्तसत्तरिमो संधि १७३ तहँ कमलहुँ केत्तर मडप्फरु ॥ ४ तहिं पज्झर काइँ किर गोप्पउ ॥ ५ तहिँ किर काइँ सस गलगज्जइ ॥ ६ तहि किं करइ कति जोइङ्गणु ॥ ७ तहिँ किर कaणु सिद्धथ ॥ ८, तहिँ कुम्हार - घड किं छुट्टइ ॥ ९
॥ घत्ता ॥
5 A उं. 6 °घडिउ 7sA°° 15. 1s A °क्विवि. 24°सुसेण वंतहिं. 7A उं. 8 sA ह. 9s डूइ.
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रावंणु तिहुयण- वणगय अङ्कुसु । साण्णु काहूँ कि माणुसु' ॥ १०
[१५]
सोआउ हेडा | णावर चिन्ता - सायण ॥ १ पभइ रहुवइ णरवर कोक्कवि ॥ २ भामण्डल - सुसेण- सुग्गीवहों ॥ ३ दहिमुह-कुमुअ-कुन्द-हणुवन्तहों ॥ ४ चन्दकिरण- करणङ्गय अङ्गहों ॥ ५
- पीलों माहिन्द-महिन्दहों ॥ ६ लोयाचारु करहों सरें' हाणों ' ॥ ७ पञ्च- पयार-मन्त-मइर्वन्तेंहिं ॥ ८ सव्वहँ जणण- वइरु वड्डारउ' ॥ ९
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॥ घत्ता ॥
सलिलु गिऍवि जइ कह वि 'वियईइ ।
खन्धावारु सव्वु दलवट्टइ ॥ १० .[१६]
जयहुँ सुर-वलें जुज्झि । भग्गु मरड जयन्तों ॥ १
8s A.
3s लइ. 4sA°हु. 5A सिरि.
१४ १ पानीयरहितः २. मदं मुंचति, ३ सर्षपः. [.१५१ विघट्टते.
[१६] १ r इंद्रपुत्रस्य.
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