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________________ क०४, १-१४,५, १-५] जुज्झकण्ड-सत्तसत्तरिमो संधि [१६७ [४] तं णिसुणेवि पहाण भणइ विहीसण-राणउ । 'एत्तिउ रुअमि दसासहाँ भरिउ भुवण जं अयसहाँ॥ १ एण सरीरें अविषय-थाणे दिट्ठ-ण?-जल-विन्दु-समाणे ॥ २ सुरचावेण व अथिर-सहावें तडि-फुरणेण व तखण-भावें ॥ ३ ॥ रम्भा-गन्भेण व णीसारें पक्क-फलेण व सउणाहारें ॥ ४ 'सुण्ण-हरेण व चिहडिय-वन्धे पच्छहरेण व अइ-दुग्गन्धं ॥५ उक्करुडेण व कीडावासें अकुलीणेण व सुकिय-विणासें ॥ ६ परिवाहेण व किमि-कोट्ठारें असुझ्हें भुवणे भूमिहे भारें ॥७ अट्ठिय-पोट्टलेण वस-कुण्डे पूय-तलाएं आमिस-उण्डें ॥ ८ ॥ मल-कूडेण रुहिर-जल-वरणे 'लसि-विवरेणं 'घम-णिज्झरणें ॥९ कुहिय-करण्डएण घिणिवन्त चम्ममएण इमेण कु-जन्तें ॥ १० तउ ण चिण्णु मण-तुरउ ण खश्चिउ मोक्खु ण साहिउ णाहु ण अञ्चिउ॥११ वउ ण धरिउ मह ण किउ णिवारिउ अप्पर किउ तिण-समउ णिरारिउ'॥१२ तं णिसुणेवि विहीरइ हलहरु 'एहु' वट्टइ णिजावण-अवसरु' ॥ १३ ।। ॥ घत्ता ॥ एम भणेप्पिणु पुणु आएसु दिण्णु परिवारहों। . 'थट्ठ-सहाक्टू खलइँ व लहु कट्ट िणीसारहाँ' ॥१४ [५] लखें रामाएसें भड-णिवहेण असेसें। मेलावियइँ विचित्तइँ 'सिल्हय-चन्दण-'भित्तइँ ॥१ वव्वर-गोसिरीस-सिरिखण्डइँ देवदारु-कालागरु-खण्डइँ ॥२ लय कत्थूरी कप्पूरङ्ग' कङ्कोलेला-लवलि-लवङ्गइँ ॥३ एव सुअन्ध-महहुम-पमुहइँ णीसारेवि मसाणहों समुहइँ॥४ किङ्कर-वरेंहिँ तिलोयाणन्दों कहिउ णवेप्पिणु राहवचन्दहाँ ॥५ 4. 1 s A °3. 2 A °कु. 3 s A °हि. 4 °धरणे. 5A °विहरेण. 6s पेम्म', 'T घम्मो. 7 8 पहु. 8 5 थट्टइ दुसहावइ. 9 s A °इ. 5. 1 A गोसीरिस. 2 5 °लेएलाइ. 3 s A °इ. [४] 'T १ शून्यगृहमिव मि(इ)दं शरीरं. २ वेष्टन इव. ३ नगर-जल-प्रवाह इव. ४ गुह्यविवरेण [इ.व. ५ प्रस्वेदः. [५] १ reads सिण्हई-स्निग्धानि(?). २ इंधनावि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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