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________________ क० १२, १-१०; १३, १-९] कवि केसावलि रेङ्खोलावड का व कुडल भउहावलि दावइ का विणिएइ दिट्ठिऍ सु-विसालऍ कवि अहिसिञ्चइ 'अविरत चाहें का विपियाणणे आणणु लोयइ कवि आलिङ्गइ. भुहँ विसालहिं www कवि परिमसइ अग्गच्हत्थयलें. कवि णिम्मल - कॅररुह पयडावइ का विपओहर-घड-जुअलेणं 'अज्जू महन्तु दिट्टु अच्चरियउ किह मुट्ठिऍ मेरु इ मुसुमूरिउ किह इन्धर्मेण देवइसाणरु किह पोट्टले विद्धु पहञ्जणु दियरु तेय - रासि कर दूसहु 'किह पडेण पच्छण्णु पहायउ किह परमाणुएण गहु छाइउ किह मसण तुलिङ भुवण- तउ · अवसरे के विणण सहसा जिह ण मरन्ति तिह तं एरिसें व सुवि इन्दइ- मुहउ मुच्छिय उ [१२] णं कसणाहि पन्ति खेलावइ ॥ १ हइ मयण धणु-लट्ठिऍ णावइ ॥ २ णं ढङ्कइ णीलुप्पल - मालऍ ॥ ३ पाउस - सिरि गिरि व्य जल-वाहें ॥ ४ णं कमलोवरि कमलु चडावइ ॥ ५ णं ओमालइ मालइ - मालहिं ॥ ६ छिंवइ णाइँ णव - लीला - कमलें ॥ ७ "णं द्रह-मुहहुँ' व दप्पणु दावइ ॥ ८ णं सिञ्चाइ लायण - जलेणं ॥ ९ जुज्झकण्ड - छसत्तरिमो संधि [ १६३ ॥ घन्ता ॥ इन्दइ- कुम्भयण्ण-आवासऍ । रावण-मरणु कहिउ परिहासऍ ॥ १० [१३] किह कमलेण कुलिस जज्जरियउ ॥ १ ॥ किह पायालु तिल पूरिउ ॥ २ किह चुलुपण सुसिउ रयणायरु ॥ ३ किह करेण ढकि मयलञ्छृणु ॥ ४ किह जोइङ्गणेण किउ णिप्पहु ॥ ५ किह सिव-पहु अण्णा णायउ ॥ ६ किह गोपऍ महि-मण्डलु माइ ॥ ७ मरणावत्थ कालु कह पत्तर' ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ · 12 1s लावइ, A लाइय. 2PA मालिहि. 4PSA°हु. 5Ps नियणयण'. Jain Education International रावण-तणयहुँ विक्कम-सारहुँ अद्ध-पञ्च कोडी कुमारहुँ ॥ ९ अहि, यहि. 3P मालेहिं 4 मालेहि, S • 13. 1 A दङ्गु. 2 P s A परि. 3 P S T ववएस. [१२] १ विस्तारयति. २ कृष्णसर्पपंक्तिरिव ३ अंशु (अश्रु ) प्रवाहेन प्रपातेन वा. ५ " रामणस्य दशान[ना]नामपि दर्पण दर्शापयति. [१३] १ कथं वस्त्रेण प्रभातो प्रच्छादितः. २ गोक्षुरमध्ये. ३ ( variant ) बुधोपदेशः; T व्यपदेशः. • ४T नख.. For Private & Personal Use Only 5 10 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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