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क०८, १-१०,९,१-१०]
जुज्झकण्डं-छसत्तरिमो संधि [१६१
[८] तारा-चक्कु व थाणहो चुका दुक्खु दुक्खु मुच्छएँ आमुक्कउ ॥ १ लग्ग रुएव्वऍ तहिँ मन्दोयरि उव्वसि रम्भ तिलोत्तिम-सुन्दरि ॥२ चन्दवयण सिरिकन्ताणुद्धरि कमलाणण गन्धारि वसुन्धरि ॥३ मालइ चम्पयमाल मणोहरि जयसिरि चन्दणलेह तणूअरि ॥४ लच्छि वसन्तलेह मिगलोयण जोयणगन्ध गोरि गोरोयण ॥ ५ रयणावलि मयणावलि सुप्पह कामलेह कामलय सयम्पह ॥ ६ सुहय वसन्ततिलय मलयावह कुङ्कुमलेह पउम पउमावइ ॥ ७ उप्पलमाल गुणावलि णिरुवम कित्ति वुद्धि जयलच्छि मणोरम ॥८
॥ घत्ता ॥ आऍहिँ सोआऊरियहिँ अट्ठारहहि मि जुवइ-सहासेहिं । णव-घण-मालाडम्बरेंहिँ छाइउ विञ्झु जेम चउ-पासेंहि ॥९
[९] रोवइ लैङ्का-पुर-परमेसरि . 'हा रावण तिहुअण-जण-केसरि ॥१ पइँ विणु समर-तूरु कहाँ वजइ पइँ विणु वाल-कील कहाँ छजइ ॥२ ॥ पइँ विणु णव-गह-एक्कीकरणउ को परिहेसइ कण्ठाहरणउ ॥ ३ पइँ विणु को विविज्ज आराहइ पइँ विणु चन्दहासु को साहइ ॥४ को गन्धव्व-वावि आडोहइ कण्णहँ छ वि सहासु संखोहइ ॥५ पइँ विणु को कुवेरु भक्षेसइ तिजगविहूसणु कहाँ वसिहोसइ ॥६ पइँ विशु को जमु विणिवारेसई को कइलासुद्धरणु करेसइ ॥७ सहसकिरण-णलकुव्वर-सकहुँ को अरि होसइ ससि-वरुणक्कहुँ ॥ ८ को णिहाण-रयणइँ पालेसइ . को वहुरूविणि विज लएसइ ॥९
॥ घत्ता ॥ सामिय पै. भविएण विणु पुप्फ-विमाणे चडेवि गुरु-भत्तिएँ । मेरु-सिहरें जिण-मन्दिरइँ को मंइँ सइ वन्दण-हत्तिएँ' ॥ १० ॥
8. 1 PS 4 तहि. 2 P S °धरि. 3 P S सोआरिय'. 4 PS व. - 9. 1 A °उ. 2 5 को विजा. 3 A पावइ. 4 P S °हो. 5 P S A °णु. 6 PS A मइ.
[९] १f मंदोदरी. २ T त्वया भव्येन विना.
पउ०च०२१
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