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क० २२, १-१०, १, ५-६]
जुज्झकण्डं-छसत्तरिमो संधि [१५७ • [२२] ॥ दुवई ॥जं उप्पण्णु चक्कु सोमित्तिहें तं सुर-णियरु तोसिउ ।
दुन्दुहि दिण्णं मुक्क कुसुमञ्जलि साहुक्कारु घोसिउ ॥१ अहिणन्दिउ लक्खणु वाणरेहिँ 'जय णन्द वद्ध' मङ्गल-रवेहिँ ॥ २ चिन्तवइ विहीसणु जाय सङ्क 'लइ णडु कजु उच्छिण्ण लङ्क ॥ ३ । मुउ रावणु सन्तई तुट्ट.अजु • मन्दोयरि विहव विणटु रज्जु' ॥४ पभणइ कुमारु करें चित्तु धीरु छुडु सीय समप्पइ खमइ वीरु' ॥५ तो गहिय-चन्दहासाउहेण • हकारिउ लक्खणु दहमुहेण ॥ ६ 'लइ पहरु पहरु किं करहि खेउ तुहुँ एकें चकें 'सावलेउ ॥ ७ महु घ. पुणु आएं कवणु गणु किं सीहहाँ होइ सहाउ अण्णु' ॥ ८ ॥ तं णिसुणेवि विप्फुरियाहरेण मेलिउ रहनु लच्छीहरेण ॥ ९
॥ घत्ता ॥ 'उअयइरिहें णं अत्थइरि गउ सूर-विम्वु कर-मण्डियउ । स इँ भु ऍहिँ हणन्तों दहमुहहाँ मण्ड उर-स्थलु खण्डियउ॥ १०
[७६. छसत्तरिमो संधि] णिहएँ दसाणणे. किउ सुरेंहिँ कलयलु भुवण-मणोरह-गारउ । लोअ-पाल सच्छन्द थिय दुन्दुहि पहय पणचिउ णारउ ।।
[१] णिवड़िऍ रावणे तिहुअण-कण्टएँ कुल-मङ्गल-कलसें व्व विसट्टएँ ॥१ ० णह-सिरि-दप्पणे व्व विच्छुट्टएँ लच्छि -वरङ्गण-हारे व तुट्टएँ ॥२ पुहइ-विलासिणि-माणे व गलियएँ रणवहु-जोवणे व दरमलियएँ ॥३ दाहिण-दिस-गएँ व्व ओणल्लएँ • णीसारिऍ व सुरासुर-सल्लऍ ॥४ रण-देवय-णमंसिऍ व दिण्णएँ तोयदवाहण-वंसें व छिण्णएँ ॥५ चवण-पुरन्दरें व्व संकमिएँ कालहों दिणयरें व्व अत्थमिएँ ॥६
22. 1. A °vण. 2 P 8 °गु. 3 P कु. 4 8 A चिंतइ वि. 5 The portion from here up to करे in line 5 is missing in s. 6 P A °न्न. 7 A सत्तइ. 8 PS पइ, A • घइ.9 A गुण्य.
1. 1 A णिहिए. 2 Ps णिच्छट्टए. 3 णवसिए. [२२] १ सगर्वः, २ 7 उदयगिरेः सकासादस्तगिरिमिव गतः,
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