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________________ क.० १८, ५-१०; १९, १ - १०, २०, १-२ ] पुणु सोलह पुणु वत्तीस होन्ति सउ अट्ठावीस तक्खणेण. छप्पort विणि सहूँ कियाइँ पुणु पञ्च सयाइँ स-बारहाइँ पुणु चवी सोत्तर सिर- सहासु • सीसइँ छिन्दन्तों लक्खणंही रण दक्खन्तु वहु-रूवा www जिह सीसइँ तिह हय वाहु-दण्ड सय सहस लक्ख अ-परिप्पमाण गोहों णं पारोह छिण्ण सव्वङ्गुलि सव्व णहुज्जलङ्ग को वि करयलु सहइ स-मण्डलग्गु कवि सहइ सिलिम्मुह - सङ्गमेण महि-मण्डल मण्डि कर - सिरेंहिँ रण देक्य अच्चिय लक्खण ॥ घत्ता ॥ [१९] " तो जण-मण- पावणाणन्दणेन रिङ-सिरहूँ ताव विणिवाइयाँ हूँ || दुवई || जिह निट्टति णाहि रिउ सीसइँ तिह लक्खण - महासरा । 'दुकरु थत्ति एत्थु रणें होस' हें वोल्लन्ति सुरवरा ॥ १ पहरन्तें दसरह - णन्दणेण ॥ २ रण-भूमि जाव ण माइयाइँ ॥ ३ णं गरुडें विसहर कय दुखण्ड ॥ ४ एक्वेक्कऍ तहि मि अणेय वाण ॥ ५ जुज्झकण्डं - पंचहत्तरिमो संधि १५५ सडि सिर पुणु णीसरंति ॥ ५ पाडिज्जइ सीस हुँ लक्खणेण ॥ ६ छिors कुमारु जिह दुक्कियाइँ ॥ ७ कमलाइँ व तोडइ तुरिउ ताइँ ॥ ८ पाडइ वच्छ-स्थल - सिरि-णिवासु ॥ ९ Jain Education International विणडे विणडे वित्थर | रावंणु छन्दहों अणुहरइ ॥ १० सुर-कर-कर के वि पइण्ण ॥ ६ णं पञ्च-फणावलि थिय भुअङ्ग ॥ ७ णं तरुवर- पल्लउ लयों लग्गु ॥ ८ णं लइ भुअङ्ग भुअङ्गमेण ॥ ९ ॥ घन्ता ॥ छुड खुडिएहिँ स-कोमलेंहिं । णाइँ' स-णालेंहिँ उप्पलेंहिं ॥ १० ww [२०] ॥ दुवई ॥ गय दस दिवस विहि मि जुज्झन्तहँ' तो विण णिट्टियं रणं । माया- रावणेण वोल्लिज्जइ 'जइ जीवेण कारणं ॥ १ लङ्केसर महु एतडिय सत्ति' ॥ २ तो जं जाणहि तं करें दवत्ति [१८] १ लक्ष्मणः. [२०] १ 'बहुरूपिणी रावणेण सह जल्पति. 18. 1 A. 2 PA रुवई, S°रुवइ. 191 $ A ड़िंत 2 s नहि, 4 नाहिं. 3PA ° यई, S° यइ. 4 P यई, s A यइ. 5P 3 अप, A माणु. 6 Ps विप्पइण्ण 7 PSA इ. 20. 1P s *हे. For Private & Personal Use Only 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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