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१५४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १६, ७-१०; १७, १-१०, १४, १-४ उत्थरिय विज सहुँ लक्खणेण दोहाविय तेण वि तक्खणेण ॥ ७ दरिसाविय विजऍ परम माय अत्थक्कऍ रावण वैणि जाय ॥ ८ ते पहय चयारि समोत्थरन्ति पडिपहय चयारि वि अट्ट होन्ति ॥९
॥ घत्ता ॥ सोलह वत्तीस दूण-कण विविह-रूव-दरिसावणहुँ । वहुरूविणि विजऍ णिम्मविय रणें अक्खोहणि रावणहुँ ॥ १०
[१७] ., ॥ दुवई ॥ जलै थलें गयणे छत्ते धऍ तोरणे पच्छऍ 'पुरे वि रावणो ।
तो लच्छीहरेण सरु मेल्लिउ माया-उवसमावणो ॥ १ 10 तहाँ सरहों पहावें विज पवर थिउ एक्कु दसाणणु होवि णवर ॥ २
उत्थरिउ अणन्तेहिँ सरवरेहिँ णाराऍदि दीहिँ तोमरेहिँ ॥ ३ वावल्लेहि भल्लैहिँ कण्णिएहिँ अवरहि मि असेसहिँ वण्णिएहिँ ॥४ सोमित्तिं तं सर-जालु छिण्णु रहु खण्डेवि पुणु वलि दिसहिँ दिण्णु ॥५
अण्णहिँ रहवरें आरुहइ जाव सिरु हणेवि खुरुप्पें छिण्णु ताव ॥ ६ 15 णं हंसें तोडिउ आरणालु। चलं जीहु वियड-दाढा-करालु ॥ ७
कहकहकहन्तु लल्लक-वयणु जालोलि फुलिङ्ग-मुअन्त-णयणु ॥८ उब्भड-भिउडी-भङ्गुरिय-भालु कम्पिर-कवोलु चल-दाढियालु ॥९
॥ घत्ता। सिरु स-मउडु पट्ट-विहूसियउ सहइ फुरन्तेंहिँ कुण्डलेंहिँ। 20 णं मेरु-सिङ्गु सहुँ णिवडियउ चन्द-दिवायर-मण्डहिँ ॥ १०
[१८] ॥ दुवई ॥ ताव समुग्गयाइँ रिउ-देहहों अण्णइँ वेण्णि सीसई ।
'मरु मरु' 'पहरु पहरु' पभणन्त उब्भड-भिउडि-भीसई ॥१ ताइँ वि तोडियइँ स-कलयलाई णं दहवयणहों दुण्णय-फलाइँ ॥२ 25 तो णवरि चयारि समुट्ठियाइँ णं थल-कमलिणि-कमलइँ थियाइँ ॥३
पुणु अण्णइँ अढ समुग्गयाइँ णं फणसहों फणसइँ णिग्गयाइँ ॥४ 5s तो दरिसाविजइ. 6 P°उ, s °हो, A °हु.
17.15°ह, A °हं. 25 पर'. 3 PS °डिवि. 4 PS चलु, A वलु. 5A पुलिंग.65 कप्पिरि. 7 PS सिर. 8 P कोंडि°, A कोड. 9 A °सिंग. 10 P णिवडिउ, S णिवडिउ,A णिवडियउं. २ नतिष्टत (? नातिष्ठत् ? ), अविलंबेन. ३ एक अक्षोहणी-बल-प्रमाण-निर्मापिता. [१७] १ अग्रे.
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