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क० १५, ९-१०; १५, १-१०; १६, ६-६] जुज्झकण्डं-पंचहत्तरिमो संधि [१५३ एक्वेक्कु जें जगु जगवि समत्थु लइ एहए अवसर वाहि हत्थु ॥ ९
॥ घत्ता ॥ जइ आयइँ पइँ ण णिवारियइँ आयामेप्पिणु भुअ-जुअलु । तो ण वि हउँ ण वि तुहुँ रामु ण वि ण वि सुग्गीउ ण पमय-वलु' ॥ १०
. [१५] ॥ दुवई ॥ तो लच्छीहरेण तरू डज्झइ हुअवह तुण्ड-कण्डेणं ।
माया:महिहरो वि मुसुमारेर दारुण-वज-दण्डेणं ॥ १ वायवेण विणासिउ वारुणत्थु • वारुणेण हुआसणु किउ णिरत्थु ॥ २ सरहेण सीहु गरुडेण णाउ पञ्चाणणेण गय(१) दिण्णु घाउ ॥ ३ णिसियरु णिरुद्ध णारायणेण तमु णासिउ दिणयर-पहरणेण ॥ ४ ॥ सोसिउ समुद्दु वडवाणलेण तहिँ अवसर आयउ णहयलेण ॥ ५ वर कण्णउ अट्ठमणोहराउ सुर-करि-कुम्भयल-पओहराउ ॥ ६ ससिवद्धण-विज्जाहर-सुआउ मालइ-माला-कोमल-भुआउ ॥ ७ 'वइदेहि-सयम्वरें वुत्तियाउ लच्छीहर तुह कुल-उत्तियाउ ॥ ८ जय णन्द वड्ड सिद्धत्थु होहि' तं णिसुणेवि हरिसिउ 'हरि-विरोहि ॥९ ।।
त्तिा ॥ सिद्धत्थु अत्थु मणे सम्भरेवि मुक्कु णिसायर-णायगेंण । तमि (?) धरिउ कुमार एन्तु णहें 'अत्थें विग्ध-विणायगेण ॥ १०
[१६] ॥ दुवई॥ जं जं किं पि पहरणं मुअइ णिसायर-वइ दसाणणो।
तं तं सर-सएहिँ विणिवारइ अद्ध-वहें जे लक्षणों ॥१ तो तियस-विन्द-कन्दावणेण वहुरूविणि चिन्तिय रावणेण ॥२ 'दे दे आएसु' भणन्ति आय मुह-कुहरें विणिग्गय तहों वि वाय ॥ ३ 'जं अट्ठ दिवस आराहिया-सि . वहु-मन्तहिँ थोत्तेहिँ साहिया-सि ॥४ तें सहल मणोरह करहि अज्जु भू-गोयर-महिहरें होहि वज्जु ॥ ५ 23 दहवयणहों केरउ रूवु लेवि मायामउ रहवर होहि देवि' ॥६
15. 1 PS°हु, A "हं. 2 F S तोय. 3 s कंडिण, A °कुंडेणं. 4 PS A °रि. 5 s°रि, A °र. 6 PS तउ.7 PS ताम.
16. 1 A °णे. 2 P °णे. 3 PS A 'हि. 4 SA °हर. २ वानराः. [१५] १ रावणः. २ '' नायकेन मुक्तः. ३ यथार्थ विघ्नविनाशकेन. [१६] १ रामलक्ष्मण-पर्वते.
पउ०च०२०
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