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________________ क०८,१-१०, ९, १-१] जुज्झकण्डं-पंचहत्तरिमो संधि १४९ [८] ॥ दुवई ॥'जाणइ-जलंण-जाल-मालावलीविया वे वि दारुणा । कुद्ध-मयन्ध गन्ध-सिन्धुर व वलुद्धर राम-रामणा ॥ १ तो रण-भर-पवर-धुरन्धरेण . अप्फालिउ धणु दस-कन्धरेण ॥ २ णं गजिउ पलय-महाघणेणणं घोरिउ घोरु जमाणणेण ॥ ३ ॥ अप्पाणु घित्तु णं णहयलेण • णं विरसिउ विरसु रसायलेण ॥४ णं महियले णिवडिउ वज-घाउ चलें रामों कम्पु महन्तु जाउ ॥ ५ मय वियलिय मत्त-महागयाहँ • रह फुट्ट तुट्ट 'पग्गह हयाहँ ॥ ६ हल्लोहलिहूअ णरिन्द सव्व णिप्फन्द णिराउह गलिय-गव्व ॥ ७ धय-छत्तेहि कडयड-सद्दु घुट्ठ कायर वाणर थरहरिय सुट्ठ ॥ ८ ॥ वोल्लन्ति परोप्परु 'णट्ठ कजु संघार-कालु लएँ ढुक्कु अज्जु ॥९ ॥ घत्ता॥ एत्तहें रयणायरु दुप्पगमु एत्तहें दारुणु दहवयणु । एवहिँ जीवेवउँ कहि तणउ दिदु ण परियणु घर सयणु ॥१० [९] ॥ दुवई ॥ तो णग्गोह-रोह-पारोह-पईहर-वाहु-दण्डेणं । विडसुग्गीव-जीव-हरणेण रणे मत्तण्ड-चण्डैणं ॥ १ अप्फालिउ वजावत्तु चाउ तहों सहें कहों ण वि गयउ गाउ ॥ २ तहों सदें वहिरिउ णहु असेसु थिउ जगु में णाई मरणावसेसु ॥ ३ तहों सद्दे णं णायउलु तुटु कह कह वि ण कुम्म-कडाहु फुटु ॥ ४ 20 रसरसिय सुसाविय सायरा वि कम्पाविय चन्द-दिवायरा वि ॥ ५ डोल्लाविय कुलगिरि दिग्गया वि अग्रंपरिहूअ सुरिन्दया वि ॥ ६ दसकन्धर-रह-करि-णियरु रडिउ लङ्कहें पायारु दर्डत्ति पडिउ ॥ ७ छुह-धवलइँ णयणाणन्दिराइँ . पडियाइँ असेसइँ मन्दिराइँ॥८ कों वि पाणेहि मुक्त अणाहवो वि णरु कायर काह मि कहइ को वि ॥ ९ 25 8. 1 PS °जालमाला (s °ल° ) वि°, A जालाव. 2 P S A °ल. 3 PS °ह. 4 A उं. 5 PA नं. 9. 1 Pमत्तंग, S मत्तंपचंडेणं. 2 P SA णाइ. 3 P सुसायविय corrected to °विस, S सुसायरि. 4 S दवत्ति. 5 s°वे. 6 P S काहे वि. [८] १ सीता. २ सिंदूरारुणगजमिव. ३ ' दोरकं. [९] १ गईः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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