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________________ ६०३, ९१ ४, १-१०५, १-८ ] एवं जलवे सुर-जय-जय-सद्देण क वि' अहिसिञ्चइ कञ्चण-कुम्भे कवि रुपम-कल जल-गाहें. कवि मरगय- कलसेण उर-त्थलु कवि कुङ्कुम-कल सेणामम्वें आयऍ लीलऍ जयसिरि-माणणु विमल - सरीरु जाउ चक्केसरु दिइँ aणु-लुहणाइँ सु-सहइँ मेल्लिय पोत्ति जिंणेण व दुग्गैइ लेप्पणु सेयम्बरु वि" सहावइ (?) ww सोहइ धवलवडे सुर-सर-वाहेण · Jain Education International ॥ घत्ता ॥ पल्हत्थिय कलस गरेसरहों । अहिसेय- समऍ जिह जिणवरहों ॥ ९ • जुज्झकण्ड - तिसप्तरिम संधि [ १२७ •To गम्पिणु देव भवणु जिणु वन्देवि भोयण - भूमि पड्डु पहाण 'जवणि भमाडिय असइ व धुत्तेंहिँ गङ्ग व सयर-सुऍहिँ णिय-गाहिं दिण्णइँ रुप्पिम-कञ्चण थालइँ विस्थारि परियलु पहु केरउ सरवरो व्व सयवत्त-विसट्टउ उवर्हि व सिप्पि - सङ्घ- सन्दोहर [ ४ ] लच्छि पुरन्दरं व विमलम् ॥ १ खल- कुट्टणि वयणा इव लहइँ ॥ ७ मोआविय केसाइँ जलुग्गइँ ॥ ८ वेढिउ सीसु वइरि-पुरु णावइ ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ आवेढिउँ दससिर - सिरु पवरु । कइलासह तङ तुङ्ग-सिहरु ॥ १० पुणिर्व सैसिमिवं जोहा-वाहें ॥ २ लिणि व णलि - उडेण महीयलु ॥ ३ ww MA सझ व दिवसु दिवायर - विम्वें ॥ ४ जय जय सदें हाउ दसाणणु ॥ ५ णं उप्पण - णाणु तित्थङ्करु ॥ ६ [५] वार - वार अप्पाणडे णिन्देवि ॥ १ कञ्च वीढें परिडिङ राणउ ॥ २ अवुह मइ व वायरणहों सुतेंहिं ॥ ३ महकइ कित्ति व सीस-सहासेंहिं ॥ ४ सुरस-चित्त व विसालहूँ ।। ५ जरढाइच्चु व कन्ति-जणेरउ ॥ ६ • पट्टण - पइसारु व बहु-वर ॥ ७ वर - जुवइ यणु व कची-सोहउ ॥ ८ 15 Ps गुण्हावेण पण्हत्थिय. 4. 1 s हि. 2 P A पुरंदरव्व. s पुरंदरे व 3 P पुण्णिम'; wanting in s. 4s ससिबिंव. 5 Pवित, sवत 6Ps A णलिणिउड्डेण. 7 PSA विमलु. 8 PSA उप्पण्णु. 9 A णाउ. 10 Ps दुग्गइ, A दुयइ. 11 Ps स विहावद्द. 12 P आवेड्डिड. 13 A तणउं. 5, 1 A उं. 2 A गंधु तसरसुएहिं. 3 P° मासे हिं. 44 कंती. २ T आनन्द-राले (? वे ) ण. [४] १ जिबणार ( जे० ) मंदिरे (?). २ r तारुण्यादित्ये (इ)व दीप्तिजनकः (?). For Private & Personal Use Only 5 10 18 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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