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________________ १२२] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० ११,३-११, १२,-" संखुहिउ ण लङ्काहिवहाँ चित्तु तं अङ्गउ हुअवहु जिह पलित्तु ॥३ मन्दोयरि कड्डिय मच्छरेण कप्पदुम-साह व कुञ्जरेण ॥ ४ हरिणि व सीहेण विरुद्धएण ससि-पडिम व राहुं कुद्धएण ॥५ उरगिन्दि व गरुड-विहङ्गमेण लोगाणि व पवर-जिणागमेण ॥ ६ 5 परमेसरि तो वि ण भयहाँ जाइ णिकम्प परिट्ठिय धरणि णाइँ ॥ ७ 'रे रे जं किउ महु केस-गाहु अण्णु वि. महएविहुँ हियय-डाहु॥८ तं पाव फलेसइ परऍ पावु दहगीउ गिलेसइ वलु जे सावु ॥९ तं णिसुर्णेवि किय-कडमद्दणेणणिन्भच्छिय तारा-णन्दणेण ॥ १० ॥ पत्ता ॥ 'काइँ 'विहाणऍण अजु जि पिक्खन्तहों दहगीवहों। सहुँ अन्तेउरेंण पइँ महएवि करमि सुग्गीवहीं' ॥ ११ [१२] - एम भणेप्पिणु रिउ रेकारिउ। 'रक्खु दसाणण मइँ पञ्चारिउ ॥१ हउँ सो अङ्गउ तुहुँ लङ्केसरु । ऍह मन्दोयरि ऍहु सो अवसर' ॥२ जं एव वि खोहहों ण गउ राउ तं विजहें आसण-कम्पु जाउ ॥ ३ आइय अन्धारउ जउ करन्ति वहुरूविणि वहु-रूवइँ धरन्ति ॥४ थिय अग्गएँ सिद्धहाँ सिद्धि जेवँ 'किं पेसणु पहु' पभणन्ति एवं ॥५ 20 'किं दिजउ वसुमइ वसिकरेवि किं दिजउ दिस-करि-थट्ट(?) धरेवि ॥६ किं दिजउ फणि-मणि-रयणु लेवि किं दिजउ मन्दर दरमलेवि ॥७ किं दिजउ सुरणंन्दिणि दुहेवि... किं दिजउ जमु णियलेंहिँ छुहेवि ॥ ८ किं दिजउ वन्धेवि अमर-राउ किं कुसुमसराउहु रइ-सहाउ ॥९ किं दिजउ धणयहाँ तणिय रिद्धि किं दिजउ 'सव्वोवाय-सिद्धि ॥१० ॥ घत्ता॥ सहुँ देवासुरेंहिँ किं तइलोक्कु वि सेव करावमि । णवर णराहिवइ एकहाँ 'चक्कवइहें ण पहावमि' ॥ ११ 5 P marginally records जं खुहिउ. 6 P S A काइ. ___12 1 PS A मइ. 2 P S A °रूवइ. 3 P s °करे', A °रि. 4 P S °णंदणु. A °णिदिणि. [११] १ सर्वम्. २ प्रभाते. [१२] १ सर्वोपायसिद्धिः. २ चक्रवर्तिस्य न प्रभवामीति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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