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________________ क० ९, ९–११; १०, १११, ११, १-२ ] कवि कयि सव्वहुँ सरणु जन्ति कवि कड्डिय 'हा रावण' भणन्ति जाहँ गईन्द ताहँ विवक्खियहुँ का विनियम्विणि केस-विसन्धुल उभय-करयल दइयों अग्गऍ 'अहों दुद्दम - दाणव- दप्प-दलण जम-महिस- सिङ्गणिवली - हिड परमेसर किं ओहट्टामु किं अॅण्णें साहिउ चन्दहासु किं अण्णें वसिकिउ उद्ध-सोण्डु किं अणें भग्गु कियन्त-राज किं अण्णें गिरि कइलासु देव किं अण्णें णिज्जिउ सहसकिरणु Jain Education International • तो वि ण झाहों अचलु' णिराtिe जोग' व सिद्धि तिह तग्गय-मणु · जुज्झकण्डे - दुसप्तरिम संधि [ १२१ मुत्तावलिं पि कण्ठऍ धरन्ति ॥ ९ दीहर-भुव-पञ्जरें पइसरन्ति ॥ १० ॥ धत्ता ॥ वरहिण- हरिण - हंस- सेयणिज्जा । अवसें सूर ण होन्ति सहेजा ॥ ११ [१०] सिढिल-णियंसण । पगलिय- लोयण ॥ १ मुह-विच्छाइय । किं अण्णहों जि भुव इतुहुँ दह ॥ घत्ता ॥ अइ वराइय || २ 10 सुर-मउड- सिहामणि- लिहिय-चलण ॥ ३ सुरकरि-विसाण-मूरण-पट्टु ॥ ४ किं रामणु अण्णों कहाँ वि णामु ॥ ५ किं अण्णें धणयों किउ विणासु ॥ ६ वण-हत्थि तिजगभूसैंणु पचण्डु ॥ ७ किं अण्णहों व सुग्गीउ जाउ ॥ ८ हेलऍ जें तुलिङ झिन्दुवैउ जेव ॥ ९ फेडिउ लकुव्वर - सक्क- फुरणु ॥ १० वरुण-राहिव-धरण-समत्था । तो किं अम्हहुँ एह अवस्था' ॥ ११ [११] टालिज रण । . मेरु- समणउ ॥ १ · रामु व भज्जहों । थि पहु विज्जहों ॥ २ 5 P°वललं, 's वलिलिं. 6 P सगइंद, 8 सगयंद ' 7 'हरिण " wanting in A. 8Ps हं. 10. 1s अइव. 2 A ° चभवण 3s अण्णहो. 4 PSA भूसण. 5A किंदुवउं. 11. 1 A राणउं 24 अतुल 3A ° समाणउं. 4 P जोग्गि. ५ वान्धवाः. ६ विवेकिनो यथा राम (व)णे नाभूत् सहायः. [१०]१ अघातः २ बलम्. पर० च० १६ For Private & Personal Use Only 5 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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