________________
क० ३, ६-११, ४, १-१]
जुज्झकण्डें-दुसत्तरिमो संधि [११७ जैहिँ पोमराय-मणि गणु विहाइ थिउ अहिणव-सञ्झा-राउ गाई ॥६ जहिँ सूरकन्ति-खेइज्जमाणु. गउ उत्तरएसहाँ णाई भाणु ॥७ जहिँ चन्दकन्ति-मणि-चन्दियाउ णव-यन्दै-ब्भासें वन्दियाउ ॥८ 'अञ्चरिउ' कुमार चवन्ति एव 'वहु-चन्दीहूयउ गयणु केम ॥९ पेक्खेप्पिणु मुत्ताहल-णिहाय 'गिरि-णिज्झर' भणेवि धुवन्ति पाय ॥ १० ॥
॥ घत्ता ॥
तं दहवयण-घर ते कुमार मणि-तोरण-दारहि । वर-वायरणु जिह' अ-वुह पइट्ठा पच्चाहारेंहिँ ॥ ११
[४] . पईठ कइद्धय भवणब्भन्तरे। णं पञ्चाणण गिरिवर-कन्दरे ॥१ पवर-महाणइ- णिवह वै सायरे ।
रवि-किरणा इव अत्थ-महीहरे ॥२ धावन्ति के वि ण करन्ति खेउ खम्भेहिँ घिडन्ति 'मेल्लन्ति वेउ ॥३ वहु-फलह-सिला-भित्तिहिँ भिडेवि संरुहिर-सिर परियत्तन्ति के वि ॥ ४ । के वि इन्दणील-णीलेहिँ जाय " 'केहि मि थिय तुम्हइँ एत्थु आय ॥५ जच्चन्ध-लील के वि दक्खवन्ति उट्ठन्ति पडन्ति सिलेंहिँ भिडन्ति ॥६ के वि सूरकन्त-कन्तीहिँ भिण्ण बहु सूरऍ मेल्लेवि' पुरेऽवइण्ण ॥ ७ के वि चन्दकन्त-कन्तेहिँ जाय मुह-यन्दहों उप्परि णांइँ आय ॥ ८ के वि पउमराय-कर-णियर-तम्व णं अहिणव-रण-लीलावलम्व ॥९ के वि आलेक्खिम-कुञ्जरहों त? के वि सीहहुँ के वि पण्णयहुँ गट्ठः ॥ १०
॥ पत्ता
णिग्गय तहों घरहों पुणु वि पडीवा तेहिँ जि वाहिँ। उअय-महीहरहों रवि-यर णाइँ अणेयागाहिँ ॥११
4 8 जहि, 4 जेहि. 5 s °पह तणु 6 s A णाइ. 7 A वंदियाउ. 8 s चंदियाउ. 9 s अच्छरिउ. 10 s दारि वि: 11 A पञ्चारहिं.
4. 1 S A पइट्ट. 2 इ. 3 s किह विवुह तुम्ह एत्थु हि जि आय. 4 A तुम्हइ. 5 s भिण्णु. 6s सूर व.7 s मिलेवि, A मिल्लिवि. 8 5 °वइण्णु. 9 s A णाइ. 10 S त?.
२ T वंदियाउ (A.'s reading ) खंडानि (?). ३ आभासे = प्रतिभासेन.
[४] १ वेगेन मिलितं (2). २ रुधिरयुक्तः. ३ धारकाः.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org