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| घत्ता
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क० १७,६-९; १, -201]
जुज्झकण्डं-एकहत्तरिमो संधि [ ११५ साहेजउ देन्तहुँ कवणु गुणु- किं मइँ आरहें सन्ति पुणु ॥६ तं गरहिउ देवहुँ चित्ते थिङ सच्चउ अम्हेहिँ अजुत्तु किउ ॥ ७ सच्चउ विरुयारउ दहवयणु ण समप्पइ पर-कलत्त-रयणु ॥ ८ एम भणेवि स-विलक्वहिं. वुचइ जक्खेंहिँ 'हरि अवराहु एक्कु खमहि । अण्ण वार जइ आवहुँ मुहु दरिसावहुँ तो सई भु ऍहिँ सव्व दमहिं॥९
... [७२. दुसत्तरिमो संधि] पुण वि पडीवऍहिँ जिणु जयकारेवि विक्कम-साहिँ । लङ्काहिँ गमणु किउ ___अङ्गङ्गय-पमुहे[हिँ] कुमारहि ॥
[१]
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वैहाइ हिं उक्खय-खग्गेहिं । पवर-विमाणेहिं धवल-धयग्नेंहिं ॥१ पढम-विसन्तेहिं लङ्क णिहालिय।
गाइँ विलासिणि कुसुमोमालिय ॥२ (जम्भेट्टिया) जाणं वि लचिजइ रवि-हएहिँ 'दहवत्त-तुरङ्गम-भय-गएहिँ ॥ ३ जहिँ मत्त-महागय-'मलहरेहिँ गजेवउ छण्डिउ जलहरेहि ॥४ जहिं पहरे पहरे ओसरइ दुरु वहु-सूरहुँ उवरि ण जाइ सूरु ॥५ जहिँ रामाणण-चन्देहिँ चन्दु । पीडिजइ किन्जइ तेय-मन्दु ॥६ जहिँ उण्हु ण णावइ अहिणवेण वहु-पुण्डरीय-किय-मण्डवेण ॥ ७ जहिँ पाउसु करि-कर-सीयरेहिँ उट्ठन्ति नइउ दाणोज्झरेहिँ ॥८ मणि-अवणिहें तुरय-खुरेहिँ पंसु वोल्लइ रविकन्त-पहाएँ हंसु ॥९ मोत्तिय-छलेण णक्खत्त-वन्दु वहु-पक्कन्ति-कन्तीऍ चन्दु ॥ १०
॥घत्ता ।। कि रवि रिक्ख ससि. अण्ण वि जे जियन्ति 'वावारें। णिप्पह वहु-पिसुण अवसें जन्ति सयण-उत्थारें ॥११
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4 5 देवहु, A देवह. 5 s A चित्ति. 6 8 सइ भुयंहि, A सइ भुएहि. 7 8 दमहो. __1. 1.जयकारिउ, A जयकारिवि. 25 लंकह. 3 °पमुह, A °पमुहं. 4 SA णाइ. 5s जंभिट्टिया, A जंभेट्ठिया. 6 5 उ. 7 8 दहवण्णतुरंगयवरधएहि. 8 s A हि. 9 A सूरु. 10s. वोलइ. 11 A °चंदु. 12 s रक्खसेहि. 13 S सयल. 14 8 उच्छारें, A उच्छारे.
[१] १T गर्जिभिः. २ १ यत्र करि-सुंडा-दंडेन नद्या जलं गृहीत्वा सीत्कारेः (१) पाउषो (sic.) वर्षाकालं ( sic.) वर्तते. ३ यत्र लंकायां प्रविशति स सूर्यकान्त-प्रभया कृत्वा हंस आदित्यः. ४ ॥ गतिरागति(?)व्यापारण. ५ T उच्छत्तारेण (१)
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