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________________ क००, ११,९, १-१०,११,१-४] जुज्झकण्ड-सत्तरिमो संधि [१०१ ॥ घत्ता ॥ लक्खणु घोसइ एम • 'तउ रामहों केरी आणा । सिसु-पसु-तवसि-तिया? किं उत्तिमु गेण्हइ पाणा ॥ ११ [९] ॥ दुवई ॥ दुढे दुम्मुंहेण दुवियतें दूसीले अयाणेणं । ___ सईहाँ वाहिवन्त-पंडिसह-पढिय-पूसय-समाणेणं ॥१ एण हएण कवणु सुहड़त्तणु अयस-भारु केवल कुल-लञ्छणु ॥२ तं णिसुंणेवि पसमिउ कोवाणलु णिय-आसणे णिविट्ठ भामण्डलु ॥३ तेहऍ काले विलक्खीहूएं पभणिउ राहवु रामण-दूएं ॥४ 'चङ्गउ भिच्चु देव पइँ लद्धउ जिह सु-कन्वें अवसद्द णिवद्धउ ॥ ५ ॥ सिर-विहीणु णउ लग्गइ कण्णहुँ तिह अवियड्ड वियड्डहुँ अण्णहुँ ॥६ आएं होहि तुहु मि लहुयारउ लवण-रसेण समुहु व खारउ ॥७ अहवइ कल्ले जि आवइ पाविय रण्डउ जेम सव्व रोवाविय ॥८ एवहिँ गजहों काइँ अकारणे वलु वुझेसउ सइँ जें महारणें ॥९ ॥ पत्ता॥ जो एक्कएँ सत्तीऍ एही अवत्थ दरिसावइ । सो पहरण-लक्खेहिँ कइ "विहय जेव उड्डावइ ॥ १० [१०] ॥ दुवई ॥ तुम्ह सिरुप्पलाइँ तोडेप्पिणु पीढु रएवि तत्थेणं । • इन्दइ-भाणुकण्ण-घणवाहण मेलेसइ स-हत्थेणं ॥१ ॥ णिहऍ वासुएव-वलएवें - लेसइ सइँ जे सीय अवलेवें ॥२ अहवइ जइ वि आउ तहों झिजइ •तुम्हारिसेंहिँ तो वि णउ जिजइ ॥३ किं जोइज्जइ सीहु कुरॉहिँ किं वसिकिज्जइ गरुडु भुयङ्गेहिँ ॥ ४ 7 S आण, अ. 8 s A पाण. 9. 1 8 A दुहे. 2 A सग्गह. 3 s°पडिसहुटिय'. 4 s तं पिणसुणिवि, A तण्णिसुणिवि. 5s भासण, A आसणि. 6s एयहो. 7 S A सत्तिए. 8 s एहावत्थ. 10. 1 s तुम्हइ. 2 s A सइ. 3 s तुम्हारिसहि, A तुम्हारिसिहिं. [९] १ ' (P's reading) प्रतिशब्दोत्थितं शुकसदृशम्. २ T मस्तकपीडाकारी यः काव्ये प्रथितोऽपशब्दो विचक्षणानां कर्णेषु न लगति, न प्रतिभासते तथा दुर्विचक्षणोऽपि. ३ ' मर्कटा: सुग्रीवा यः. ४T पक्षिणो यथा. ww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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