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________________ १०१] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०७, १-१० .१-.. [७] ॥ दुवई ॥ तेहिँ वि वासुएव-बलएवहिँ पहरिसिएहिँ तक्खणे। हकारेवि पासु सम्माणेवि वइसारिउ वरासणे ॥ १ किय-विणएण कियत्थीहूएं सामु पउञ्जिउ दहमुह-दूएं ॥ २ "अहो अहाँ राम राम रामा-पिय सुरवर-समर-सएहिँ अकम्पिय ॥ ३ अहाँ अहाँ सयल-पिहिमि-परिपालण मायासुग्गीवन्त-णिहालण ॥४ अहाँ अहों दुद्दम-दणु-विद्दावण वइरि-वरङ्गण-जण-जूरावण ॥ ५ अहाँ अहों वज्जावत्त-धणुद्धर वाणर-विजाहर-परमेसर ॥ ६ सन्धि दसाणणेण सहुँ किजउ . इन्दइ-कुम्भयण्णु मेल्लिज्ज उ ॥ ७ ॥ लङ्क दु-भाय ति-खण्ड वसुन्धर छत्तइँ पीढइँ हय-गय-णरवर ॥ ८ णिहि-रयणइँ अद्धद्ध लइजउ सीयहें तणिय तत्ति छड्डिजउ' ॥९ ॥ घत्ता॥ पभणइ राहवचन्दु 'णिहि-रयण' हय-गय-रजू सव्वइँ सो जे लएउ अम्हहुँ पर सीयऍ कजू' ॥ १० . [८] ॥ दुवई ॥ तं णिसुणेवि वयणु काकुत्थों ईसीसि वि ण कम्पिओ। ___तिण-समु गणेवि सयलु अत्थाणु दसाणण-दूउ जैम्पिओ ॥१ 'अहाँ वलएव देव मा वोलहि कन्तहें तणिय वत्त आमेल्लहि ॥२ । लङ्काहिउ हेमन्तु में वीयउ जो णिविसु वि णउ होइ णिसीयउ॥३ " जो रत्तिदिउ परिकअणप्पणेदीसइ सुविणऍ असिवर-दप्पणे ॥४ जेण धणउ कियन्तु किउ णिप्पहु सहसकिरणु णलकुम्वरु सुरं-पहु ॥५ जेण वरुणु समरङ्गणे धरियउ अट्ठावउ पावउ उद्धरियउ॥६ तेण समउ जइ सन्धि ण इच्छहि तो अवज्झ जीवन्तु ण पेच्छहि ॥ ७. तं णिसुणेवि कुइउ भामण्डलु णं उद्विउ स-खग्गु आखण्डलु ॥८ " 'अरें खल खुद्द स-मउड स-कुण्डलु पाडमि सीसु जेम तालहों फलु ॥९ को तुहुँ कहाँ केरउ सो रावणु जं मुँहुमुहु जम्पहि अ-सुहावणु ॥१० ____7. 1 s तेहि, A तहिं. 8. 1 s A कंपिउ. 2 8 A जंपिउ. 3 s A कंतहि. 4 A सुरवहुं. 5A समउं. 6 A आईडलु. 14] १ द्वितीय हिमवंतः ( ? ). "२ र शत्रुबले स्वमादिषु (?) दृश्यते रावणः. ३ ' वारंवारम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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