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________________ ९८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०३, ४-१०,४,1-1. 'चङ्गडे माएँ माएँ पइँ वुत्तउ अर्थसत्थे एउ विसु-णिरुत्तउ ॥४ अकुसलु कुसलेहिँ ण जुज्झेवउ राएं रज-कज्जु वुझेवउ ॥ ५ पर-वलु पवरु णिऍवि वञ्चेवउ अहवइ थोडउ तो जुझेवउ ॥ ६ समु साहणु सरिसउ जि समप्पउ अवरु पवरु पर-चक्किड चप्पइ ॥ ७ तें कजे जाणेवउ अवसरु सुइणए वि सङ्गामु असुन्दरु ॥८ करेंवि पयत्तु तन्तु रक्खेव्वउ मण्डल-कजु एउ लक्खेव्वउ ॥९ ॥ घत्ता॥ जं उव्वरियउ किं पितं सेण्णु जाव णावइ । ताव समप्पहि सीय - ऍहु सन्धिहें अवसरु वट्टई' ॥१० [४] ॥ दुवई ॥ तं परमत्थ-वयणु णिसुणेप्पिणु दहवयणेण चिन्तियं । 'वैरि मेहलि ण-इण्ण' णउ पुजिउ मन्तिहिँ तणंउ मन्तियं ॥१ पच्चासण्ण परिट्टिएँ पर-वले अवरोप्पर आयण्णिय-कलयलें ॥२ कवणु एत्थु किर सन्धिहें अवसरु उत्तिम-पुरिसों मरणु जें सुन्दर ॥ ३ ॥ सम्वु-कुमार-णिहणे खर-आहवें चन्दणहिहें कूवार-पराहवें ॥४ आसाली-विणासें वण-महणे किङ्कर-अक्ख-रक्खे-कडमद्दणे ॥५ मन्दिरं-भङ्गे विहीसण-णिग्गमें अङ्गऍ दूऍ उहय-वल-सङ्गमें ॥६ हत्थ-पहत्थ-णील-णल-विग्गहें इन्दइ-भाणुकण्ण-वन्दिग्गहें ॥७ तहिँ जि काले जंण किउ णिवारिउ तं किं एवहिँ थाइ णिरिउ ॥८ " तो इ तुहारी इच्छ ण भञ्जमि माणिणि' एह सन्धि पडिवजमि ॥९ . ॥ घत्ता ॥ जइ उव्वेढइ रामु णिहि-रयण' रज्जु लएप्पिणु । पइँ मइँ सीयाएवि तिण्णि वि वाहिर करेप्पिणु' ॥१० 3. 1 A चंगउं. 2 5 अरथे सत्थे एउ णिरुत्तउ, A अस्थि भत्थि. 3 कुसलेहि, A कुसुमेहि न. 4 s राय, A रज्जु. 5A संधिहु. 4. 1 A वर. 2 A तणउं. 3 SA संधिहि . 4 8 °णिहणि. 5 s चंदणदेहि, A चंदणिहेहि. 6 SA मंदिरे. 7s अंगमे. 8 SA °भाणुकण्णु. 9 s A तहि. 10 A वियारिउ. 11 SA - रयणइ. 12 s मुयेप्पिणु. [३] १ कटकाः. २ ' पृथ्वी. [४] १ T न दत्ता. २ T वनरक्षकाः ३ T हे स्त्री. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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