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*. १, ४-६०; २, १-१०, ३, ६-३] जुज्झेकण्ड-सत्तरिमो संधि [९७ 'अहाँ अहाँ देव देष जग-केसरि आइय का वि विसल्ला-सुन्दरि ॥४ ताएँ जणदणु पच्चुज्जीविउ. णं घिय-धारहिँ सिहि संदीविउँ' ॥५ तं णिसुणेवि कल-कोइल-वाणी चिन्ताविय मन्दोयरि राणी ॥६ 'अज वि वुद्धि ा थाइ अयाणहों केवलि-भासिउ ढुक्कु पमाणों' ॥७ एम वियप्पें अमरोहावणु. पुणु सम्भावे पभणिउं रावणु ॥८ 'जे मुआ वि जीवन्ति, खणं खणे दुजय हरि-वल होन्ति रणङ्गण ॥९
॥ घत्ता ॥ देहि दसाणण सीय अजं वि लङ्काउरि रिज्झउ । तोयदवाहण-वंसु मं राम-दवग्गिएँ डज्झउ॥१०
[२] ॥ दुवई ॥ इत्वइ भाणुकण्णु घणवाहणु वन्धाविय अकजेणं ।
सयण-विहूणएण किं किजइ ऐवहिँ राय रजणं ॥१ किं उड्डिउ णिप्पक्खु विहङ्गमु किं णिव्विसु संडसउ भुअङ्गम् ॥२ किं वा तवउ णितेउ दिवायरु किं णिज्जलु उच्छल्लउ सायरु ॥३ गय-विसाणु किं गज्जउ कुञ्जत- किं करेउ हरि हय-णह-पञ्जरु॥४ किं विष्फरउ चन्दु गह-गहियउ किं पज्जलउ जलणु जल-सहियउ॥५ किं छजउ तरु पाडिय-डालउ किं सिज्झउ रिसि वय. अ-पालउ ॥ ६ किं करेहि तुहुँ सुदु वि भल्लउ वन्धव-सयण-हीण एक्केल्लउ ।।७ तो वरि वुद्धि महारी किजउ अज वि एह णारि अप्पिजउ ॥८ उब्वेढेवि जन्तु हरि-राहव __ मेल्लिजन्तु तुहारा वन्धव ॥९
॥ घत्ता ॥ अन्ज वि एउ जें रजु रह-हय-गय-धय-दरिसावणु । ते जें सहोयर सव्व • तुहुँ सो जे पडीवउ रावणु' ॥१०
[३] ॥ दुवई॥ मन्दोवरि-विणिग्गयालाव पसंसिय सयल-मन्तिहिं। .
. केयइ-कुसुम-गन्ध परिचुम्विय णावइ भमर-पन्तिहिं ॥१ पाल-जुवाण-वुड्ड-सामन्तेंहिँ सव्वेंहिँ 'जय जय देवि' भणन्तेंहिँ ॥२ किय-कर-मजलि-णमिय-सिर-कमलेहिँ पुजिउ तं जि वयणु मइ-विमलेहि ॥ ३. 8 A संदीविडं. 9 A विअप्पें. 10 खणे. 2. 1S A एवहि. 2 s विष्फुरिउ. 3 A अप्पाललं. 4 5 उवेडेवि, A उवेढेवि.
पउ० च०१३
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