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________________ कं० २०, १–१०; २१, १–१४ ] जं राम- सेण्णु णिम्मल - जलेण तं वीरेंहिं वीर रसाहिएहिँ वजन्तेंहिं पडहेंहिं मद्दलेहिं गच्चतेहि खुज्जय- वामणेहिं गायन्तहिँ अहिणव- गायणेहिं सव्वेंहिँ उण्णिद्दाविउ अणन्तु विहसेप्पणु उच्च हलहरेण ता दुद्दम-दणु- णिद्दल - दप्प जममुहहों जाऍ णीसारिओऽसि सा कण्ण णिऍवि हरिसिय-मणासु 'किं चलण-तलग्गइँ कोमलाई किं ऊरु परोप्परु भिण्णे-तेय किं कणय-दोरु घोलड विसालु किं तिवलिड जढरें पधावियाउ किं रोमावलि घण कसण एह किं णव थण णं णं कणय-कलस किं आयम्विर कर-यल चलन्ति किं आणणु णं णं चन्द-विम्वु किं दसणावलिउ समुत्तियाउ - किं गण्डवास णं दन्ति-दाण किं भउ इमाउ परिड्डियाउ किं कण्ण कुण्डलाहरण एय किं भालउ णं णं ससहरडु जुज्झकण्ड - एकुणसत्तरीमो संधि [९५ [२०] संजीव संजीवणि-वलेण ॥ १. वग्गन्तेंहिँ पुलय-पसाहिएहिँ ॥ २ गिज्जतेंहिँ धवहिँ मङ्गलेहिँ ॥ ३ जजु - रियर पढन्तेंहिँ वम्भणेहिं ॥ ४ वायन्ते हि वीणा वायणेहिं ॥ ५ तं णिसुर्णेवि जोइय लक्खणण णं एक्कऍ सत्तिएँ परिहरिउ Jain Education International उ 'त्त रावणु' भणन्तु ॥ ६ 'किं खलेंण गवि णिसियरेण ॥ ७ जव वय विसलहें तउ वप्प ॥ ८ लङ्कहें विणासु पइसारिओऽसि ॥ ९ ww ॥ घत्ता ॥ तक्खण-मयणाअं ल्लियउ । पुणु अण्णेक्कऍ सल्लियउ ॥ १० [२१] उप्पण्ण भन्ति नारायणासु ॥ १ णं णं अहिणव- रत्तुप्पेलाइँ ॥ २ णं णं णव- रम्भा खम्भ एय ॥ ३ णं णं अहि रयण-णिहाण-पालु ॥ ४ णं णं कामउरिहें खाइयाँउ ॥ ५ णं णं मयणाणल-धूम-लेह ॥ ६ किं कर णं णं पारोह- सरिस ॥ ७ णं णं असोय-पल्लव ललन्ति ॥ ८ किं अहरउ णं णं पक्क-विम्वु ॥ ९ णं णं मल्लिय- कलियर इमाउ ॥ १० किं लोयण णं णं कामवाण ॥ ११ णं णं वम्मह धणुट्टियाउ ॥ १२ णं णं रवि-ससि विष्फुरिय-तेय ॥ १३ किं सिरु णं णं अलि-उल- णिवद्धु' ॥ १४ 20. 1s वावणेहि 2s जज्जरियड, 4 जज्जुरिज्जु 3s गायंतहि, A गायंतहिं. 4 A तणउं. 5 s A लंकहि. 6s हल्लियउ. • 211s तुपलाइ 24 भिण्णु. 3s 4 खाइआ उ. 4 A भउहउ. For Private & Personal Use Only 3 10 18 20 26 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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