SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १८,१-११; १९,३-१ [१८] किंण मुंणिय पइँ महु तणिय थत्ति हउँ सा णामेणामोह-सत्ति ॥१ कइलासुद्धरणे भयावणासु धरणिन्दें दिण्णी रावणासु ॥२ सङ्गाम-काले लक्षणों मुक्त हरि-आणऍ विज्जु व गिरिहें ढुक्क ॥३ असहन्ति विसल्लहें तणउ तेउ णासमि लग्गी किं करहि खेउ ॥४ आयएँ अवलम्वेवि परम-धीरु अण्णहिँ जम्मन्तर घोर-वीरु ॥५ तव-चरणु णिरोसहु चिण्णु तावँ गय वरिसहुँ सहि सहास जाएँ' ॥६ हणुएण वुत्तु 'जइ सच्चु देहि तो मुंयमि पडीवी जइ ण एहि ॥ ७ विजएँ पभणिउ 'लइ दिण्णु दिण्णु णउ भिण्णमि जिह एवहिं विभिण्णु' ॥८ ॥ तं णिसुणेवि पवण-सुएण मुक्क विहडप्पड गय णिय-णिलउ ढुक्क ॥९ एत्तहे वि ताव सरहस पइट्ट स-वलेण वलेण विसल्ल दिह ॥ १० ॥ घत्ता ॥ सिउ सन्ति करन्ति हरन्ति दुहु सीयहें रामहों लक्खणहों। अत्थक्कएँ दुक भवित्ति जिह लङ्कहें रजहों रावणहों ॥ ११ [१९] सव्वङ्गिउ हरि परमेसरी' परिमट्ठ विसल्ला-सुन्दरीऍ ॥१ समलड्डु सुअन्धे चन्दणेण रामहों वि समप्पिर तक्खणेण ॥२ तेण वि पट्टविउ कइद्धयाहँ जम्वव-सुग्गीवङ्गङ्गयाह ॥३ भामण्डल-हणुव-विराहियहिँ णल-णीलहँ हरिस-पसाहियाहँ ॥४ 20 गय-गवय-गवक्खाणुद्धराहँ कुन्देन्दु-मइन्द-वसुन्धराहँ ॥५॥ अवरह मि चिन्ध-उवलक्खियाहँ सामन्तहँ रावण-पक्खियाहँ॥६ केसरिणियम्ब-सुय-सारणाहँ रविकण्णेन्दइ-घणवाहणाहँ ॥७ जमघण्ट-जमाण[णजममुहाँहँ धूमक्ख-दुराणण-दुम्मुहाहँ ॥ ८ ॥घत्ता॥ अवरह मि असेसहुँ णरवइहुँ दिण्णु विहछेवि गन्ध-जलु । अत्थक्कएँ जाउ पुणण्णवउ सयलु वि रामों तणउ वलु ॥ ९ __ 18. 1 PS पइ. 2 S A वरिसहु. 3 s मुयविं, A मुएमि. 4 5 विजइ, A विजाइ. 5 s एवहि, 6 मथक्क पढुक्क. 19. 1 s ते राम समप्पिउ. 2 8 A विराहिवाहं. 3 SA सामंतह. 4 5 जमइंटह जममुहसणिहाई, A जमाण. 5 A तणउं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy