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क०१६, १-९,१७,१-९]
जुज्झकण्ड-एकुणसत्तरीमो संधि [९३
[१६] स वि णयणकडक्खिय दुजएहिँ सिय णावइ चउहु मि दिस-गएहिँ ॥१ ते पुलइय णव-णीलुप्पलच्छि ववसाउ करन्तहाँ कहाँ ण लच्छि ॥२ पुणु पोमाइउ लक्खणु कुमारु ' 'संसारहों लइ एत्तडउ' सारु ॥ ३ जइ जीविउ केव वि कह वि पत्तु तो धण्णउ जसु एहउ कलत्तु' ॥ ४ भामण्डलेण कोकावियाउँ लहु णियय-विमाणे चडावियाउ ॥ ५ । तिणि वि संचल्ल णहङ्गणेण गय लङ्क पराइय तक्खणेण ॥ ६ जिह जिह कण्णउ दुकन्ति ताउ तिह तिह विमलीहूयउ दिसाउ ॥ ७ रामेण वुत्त 'जम्बव विहाणु लइ अप्पउ दहमि हरिं समाणु ॥८
॥घत्ता ॥ धीरिउ राहवु रिच्छद्धऍण 'जणिय विसल्लऍ विमल दिसि। " किं कहमि भडारा दासरहि तिहिँ पहरेंहिँ सम्भवइ णिसि ॥९
_ [१७] ण विहाणु ण भाणु मणोहरी, उहु तेउ विसल्ला-सुन्दरीहें' ॥१ वल-जम्वव वे वि चवन्ति जाव णीसरिय सरीरहों सत्ति ताव ॥२ पुण्णालि गाइँ पर-परवरांउ णं णम्मय विझ-महीहराउँ ।। ३ । णं सद्द-माल वर कइवरांउ णं दिव्व वाणि तित्थङ्कराउ ॥ ४ एत्थन्तरें अम्बरें धगधगन्ति पवणञ्जय-तणएं धरिय जन्ति ॥ ५ णं वेस वियडे णरवरेण णं पवर मह्मणइ सायरेण ॥ ६ पचविय वेवन्ति अमोह-सत्ति में धरै मं धरै मुऍ मुऍ दवत्ति ॥७ णउ दुट्ट-सवत्तिहें समुहु थामि ऍह अच्छउ हउँ णिय-णिलउ जामि ॥८॥
॥ घत्ता ॥ असहन्तिहें हियय-विणिग्गयहें कवणु एत्थु अब्भुद्धरणु । सव्वहें भत्तारें घत्तियहें कुल-बहुअहें कुलहरु सरणु ॥ ९
16. 1 s ते, A ति. 2s 'याउ. 3 A ज्झाउ. 4 A धारिंउ. 5 s A तिहि.
17. 1 s हरिहि, A हरीहि. 2 A °सुंदरीहि. 3 s A णाइ. 4 5 रहो. 5 s मा धरे, मा धरि, A धरि में धरि. 6 S असहंतिहि, A असहत्तिह. 7 घल्लियहि.
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