________________
९२] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क० १४, २-९,१५, १-९ रण-भेरि समाहय दिण्ण सञ्ज साहणु सण्णडु अलंद्ध सङ्ख ॥२ रह जोत्तिय किय करि सारि-सज्ज पक्खरिय तुरङ्गम जय-जसज्ज ॥३ सरहसु सण्णज्झइ भरहु जाव भामण्डलेण विण्णत्तु ताव॑ ॥४ 'पइँ गऍण वि सिज्झइ णाहिँ कज्ज तं करि हरि जीवइ जेण अजु ॥५ । जइ दिण्णु विसल्लहे तणउ ण्हवणु तो अक्खहि सणु ण किउ कवणु॥६ तं वयणु सुणेप्पिणु भणइ राउ 'किं सलिलें सइँ जे विसल्ल जाउ' ॥७ पट्टविय महल्ला गय तुरन्त कउतिकमङ्गलु णिविसेण पत्त ॥८
॥पत्ता ॥ विण्णविउ णवेप्पिणु दोणघणु 'जीविउ देव देहि हरिहें । ॥णीसरउ सत्ति वच्छत्थलहों जलेंण विसल्लासुन्दरिहें' ॥९
[१५] एत्तडिय वोल्ल पडिवण्ण जाव केका सम्पाविय तहिँ जि.ताव ॥१ पणवेप्पिणु भायरु वुत्तु तीऍ 'करें गमणु विसल्ला-सुन्दरिऍ ॥२ .
जीवउ लक्खणु हम्मउ दसासु पूरन्तु मणोरह राहवासु ॥३ 15 आणन्दु पवडउ जाणईहे तणु तारउ दुक्ख-महाणईहें ॥४
अण्णु वि विसल्ल तहाँ पुग्व-दिण्ण लग्गउ कराले सम्भाव-भिण्ण' ॥५ तं वयणु सुणेवि परितुदु दोणु 'उडउ णारायणु अखय-तोणु' ॥६ पट्टविय विसल्ल-खणन्तरेण सहुँ कण्ण-सहासें उत्तरेण ॥७ गय जयकारेप्पिणु दोणमेहु केक्कइय पराइय पियय-गेहु ॥ ८
॥ घत्ता॥ हणुवड्य-भामण्डल-भरह दिट्ठ विसल्ला-सुन्दरिऍ। णं मज्झ-पैदेसे पइट्ठियएँ चउ मयरहर वसुन्धरिए ॥९ पुणु सोमित्तिय संवरिवि सोउ
रोवंतु णिवारिवि सयलु लोउ ॥ पुणु भणिय हलाउव-जणणि तेण धीरवहि अप्पु सामिणि मणेण ॥ सुनु माइग (?) तुय लक्खणु सुधण्णु जा सम महियलि अवरु ण उवण्णु ॥ जिणि पाण समप्पिय पहुहि कजि अरि उवरि परक्कमु अतुलु स जि ॥ वल सहु भासिज्जहि हणुव एव
टुहु चि (?) भण धरिजइ देवदेव ॥ अणुचर-वड्डत्तणु हवइ एहु
पहु-कजि समप्पइ णियय-देहु ॥ तुहु जुजहि अरि घण-पलयवाहु जिम होइ सत्तु जिणि सीयलाहु ॥ रहु-जणणि भणइ सुव काई किण्णु तिय-कारण लक्खणु सत्ति-भिन्नु ॥ किं उचरिउ वण्णउं रहु-समाणु किउ वंधव-मरणु असझठाण ॥ वतु (?) वज्झतनू जरि तण अहंग जोवण मह रूवें सडंग ॥ णउ पुञ्ज कुपुत्तुउ वणु (?) कोक्खि अप्पर पोसवइ कुलवल्लि सोक्खि ॥
4. 1A तणउं. 2 A अक्खुवि. 3 SA संइ. 4 s°यलहो. 15. 1 A °तिण्ण. 2 S A दोणु. 3 °वगंगय . 4 s देसे, A पदेसि.
10
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org