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क०९, ६-९, १०, १-९,११, १-४] जुज्झकण्डं-अट्ठसट्टिमो संधि [८३ गजन्त पधाइय तक्खणेणणं स-जल जलय गयणङ्गणेण ॥ ५ . "खल खुद्द पाव दक्खवहि मुहु कहिँ कण्ण लएविणु जाइ तुहुँ".॥६ तं णिसुणेवि कोवाणल-जलिउ __णं सीहु गइन्द-थट्टे वलिउ ॥ ७ तें पढम-भिडन्तें भग्गु वलु णावइ अवसदें कव्व-दल ॥ ८
॥ घत्ता ॥ कह वि परोप्परु सन्थवेवि स-धयग्गु स-हेइ स-वाहणु। गिरिवरें जलहर-विन्दु जिह उत्थरिउ पडीवउ साहणु ॥९
[१०] कड्डिय-धणुहर-मेल्लिय-सरेंहिँ 'तिहुअणआणन्दहों किङ्करेहिँ ॥१ सव्वेंहिँ णिप्पसरु णिरत्थु किउ पाडिउ विमाणु परिछिण्णु धउ ॥२ ॥ णासविउ जं अरिवर-णिवहु तं विज सरेप्पिणु पण्णलहु ॥ ३ घत्तिय धरणियलें अणङ्गसरा णं सरय-मिय. जोण्ह वरा ॥ ४ सु पणडु पुणव्वसु गीढ-भउ णं हरिणु सरासणि-तासु गउ ॥५ अलहन्त वत्त कण्णहें तणिय किङ्कर वि पत्त पुरि अप्पणिय ॥ ६ अन्तेउरु लक्खिउ विमण-मासु णं 'तुहिण-छित्तुं सयवत्त-वणु ॥७ ॥ अत्थाणु वि सोह ण देइ किह जोव्वणु विणु काम-कहाएँ जिह ॥८
॥घत्ता ॥ कहिउ णरिन्दों कङ्करहिँ “जलें थले गयणयले गविट्ठी। सिद्धि जेम णाणेण विणु तिह अम्हहिँ कण्ण ण दिट्ठी" ॥९
[११] एत्थन्तरें छण-मियङ्क-मुहिय तिहुअणआणन्द-राय-दुहिय ॥१ . पण्णलहुअ-विजऍ चित्त तहिँ 'सुण्णासणु भीसणु रण्णु जहिँ ॥२ जाहिँ दारिय-करि-कुम्भ-स्थलइँ उच्छलिय-धवल-मुत्ताहलइँ ॥३ दुप्पेक्ख-तिक्ख-णक्खकिय दीसन्ति सीह-परिसक्कियइँ ॥ ४
2 P काहे वि, s कहि वि. 10. 1 8 कण्णहो, A कण्णहिं. 2 Ps किंकरे. 3 P विमणु. 4 च्छिण्णु. 5 P अम्हह.
[९] १ सामग्री. . [१०] १ चक्रवर्तेः. २ त्रसितः. ३ तुसारेण कमलः. [११] १ ऊर्ध्वसंस्थान-खरूपविशेषणमिदं यथा शुक्लं शंखं प्रत्येति ।
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