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________________ ८० सयम्भुकिउ पउमचरिउ १-९,४,१-९,५,१-२ पुणु पुच्छिउ भरहणरिन्दु मइँ "एउ गन्ध-मलिलु कहिँ लडु पइँ" ॥१ तेण वि महु गुन्झु ण रक्खियउ सत्तुहण-चरिढ़े अक्खियउ ॥ २ "स-विसयहों अउज्झा-पट्टणहों। उप्पण्ण वाहि सव्वहाँ जणों ॥ ३ 5 उर-घाउ अरोर्चेउ दाहु जरु कल-सण्णिवार गहु छद्दि-करु ॥४ "सिरे सूलु कवाल-रोउ पवरु सप्पडिस (?) खासु सासु अवरु ॥५ तेहऍ कालें तहिँ एक्कु जणु स-कलत्तु स-पुत्तु स-बन्धुजणु ॥ ६ स-धउ स-वलु स-णयह स-परियणु परिजियइ 'सईत्तउ दोणघणु ॥ ७ जिह सुरवइ सव्व-वाहि-रहिउ सिरि-सम्पय-रिद्धि-विद्धि सहिउ ॥ ८ ॥ पत्ता ॥ तेण विसल्हे तणंउ जलु आणेप्पिणु उप्परि पित्तउ । पट्टणु पञ्चजीवियउ स-पउरु णं अमिएं सित्तउ" ॥९ [४] जं पञ्चजीविउ सयलु जणु तं भरहें पुच्छिउ दोणघणु ॥ १ । "अहाँ माम एउ कहिँ लडु जलु णाणाविह-गन्ध-रिद्धि-बहुलु ॥ २ पर-कज्जु जेम जं सीयलउ जिण-सुक्क-दाणु जिह णिम्मलउ ॥ ३ जिण-वयण जेम जं वाहिहरु सुहि-दसणु जिह आणन्द-यरु" ॥ ४ तं णिसुणेवि दोणु णराहिवइ पप्फुल्लिय-वयण-कमलु चवइ ॥ ५ "मैम दुहियहें अमर-मणोहरिहें इउ ण्हवणु विसला सुन्दरिहें ॥ ६ ॥ विणु भन्तिऍ अमियों अणुहरइ जसु लग्गइ तासु वाहि हरई" ॥ ७ तं णिसुणेवि भरहें पुजियउ णिय-णयरहों दोणु विसजियउ ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ अप्पुणु गउ तं जिण-भवणु जं सासय-सोक्ख-णिहाणु । णावइ सग्गों उच्छलेवि महि-मण्डले पडिउ विमाणु ॥ ९ [५] तहिँ सिद्ध-कू. सुर-साराहाँ किय थुइ अरहन्त-भडाराहों ॥ १ तइलोक-चक्क-परमेसरहों अ-कसायों 'णिद्दवाहरहों ॥ २. 3. 1 P इउ, S यउ. 2 S A गंधु. 3 A °यउं. 4 P अरोच्चउ, S अरोद्धउ. 5P SA सिरि. 6 A B उप्प. 7 P S A तहि. 8 P सञ्चउ, A सद्धउ. 9 A B सउत्तउ. 10 A तणउं. 4. 1 A °कण्णु. 2 P S णिम्मलडं. 3 महु. 4 A °रिए. 5A विसजिउ. ___5. 1 PS °एक. 2 P णिइति?', 5 णिद्दिट्टा. ३] १ जेष्ठेन. २ स एव स्वस्थो जियति. ३ द्रोणमेघेन, [५] १ (P'. s reading) तृष्टानिःक्रांतो अधरो यस्य, अथ निद्रा तृष्णा था हरिता येन वा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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