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________________ ७४ सयम्भुकिउ पउमचरिउ (क० ६,१-८७,१-९ __ [६] एहावत्थ जाम्ब 'हलहेइहें दुद्दम-दाणविन्द-वल-खेइहें ॥ १ 'दाणे महायणेहिँ परिछेइहें केण वि कहिउ ताम्व वइदेहिहें ॥२ उर-णियम्व-गरुअहें किस-देहिहें रामयन्द-मुह-दसण-णेहिहें ॥ ३ 5 'सीऍ सीऍ लइ अच्छइ काई सीऍ सीऍ लइ आहरणाई ॥४ सीऍ सीऍ अचहि णयणाई सीऍ सी' चउ प्रिय-वयणाई ॥ ५ सीऍ सीऍ करें वद्धावाणउ वलु लोहाविउ सुग्गीवाणउ ॥ ६ लइ दप्पणु जोवहि अप्पाणउ मुहु परिचुम्वहि दहवयोणउ ॥ ७ ॥ पत्ता ॥ रावण-सत्तिऍ विणिभिण्णउ दुक्कर जिअइ कुमारु रणे। परिहव-अहिमाण-विहूर्णउ लइ रामु वि मुअउँ जे गणे ॥ ८ [७] तं णिसुणेवि वइदेहि पमुच्छिय हरियन्दणेण सित्त उम्मुच्छिय ॥ १ चेयण लहेंवि रुवन्ति समुट्ठिय ___हा खल खुद्द पिसुण विहि दुत्थिय ॥२ 15 लक्खणु मरइ दसाणणु छुट्टइ हियउ केम तुज उडु ण फुट्टइ ॥ ३ छिण्ण-सीस हा दइव दुहावह कवण तुज्झ किर पुण्ण मणोरह ॥ ४ हा कैयन्त तउ कवण सुहच्छी जं रण्डत्तणु पाविय लच्छी ॥५ हा लक्खण पेसणहों णिउत्ती कहाँ छड्डिय जय-सिरि कुल-उत्ति ॥ ६ हा लक्खण पइँ विणु महि सुण्णी धाह मुरवि सरासइ रुण्णी ॥ ७ " हा लक्खण कल्लऍ पवरोहबु कहाँ एकल्लंउ मेल्लिउ राहउ ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ णिय-बन्धव-सयण-विहूणिय दुह-भायण परिचत्त-सिय । मइँ जेही दुक्खहँ भायण तिहुअणे का वि म होज तिय ॥९ 6. 1 P °हेयहे, s °हेयहो. 2 PS महाइयणेहि, A महाहयणे. 3 P °मुहई(s ). दसणेहिहे (s हि). 4 P 8 लइ अंजहि. 5 Pणयणई.6 P S जंपहि. 7 P°वयणइं, 5 °वयणइ. 8 P वद्धावणउ, 5 वद्धावणउ, A वद्धावाणउं. 9A °वाणउं. 10 P A अप्पाणउं. 11 1A °णउं. 12A °भिण्णिउं. 13 P S जीवइ. 14 A °विहणउं, Tविहूणउं. 15 P मुमउं. 16 Pजे, S A जि. 7. 1 P S तुज्झु. 2 PS पूर. 3 PS कियंत. 4 P S पेसणह. 5A निवित्ति. 6 s जसिरि. 7 PS करेवि. 8 8 वराहउ, A अवराह उ, B अपराहउ. 9 P S एकेलउ. 10 PS होउ म का वि तिय. - [६] १ रामस्य, हलायुधस्य. २ दानसन्मानरहितायाः, वा दाने युद्धे परान् जयति यस्तस्य. ३ सुग्रीवस्य बलं पातितं. ४ Tपरिभताभिमानौ न जानाति स निकृष्टः अनु दीनत्वं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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